Sunday, July 20, 2025
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मथुरा से एबटाबाद तक: फिल्म अभिनेता मनोज कुमार ने जब बताया था अपना असली घर

मथुरा, हिंदी सिनेमा के महानायक और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। लंबे समय से बीमार चल रहे मनोज कुमार का शुक्रवार तड़के मुंबई के कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में निधन हो गया। उनके जाने की खबर ने जहां फिल्म जगत को शोकाकुल कर दिया, वहीं मथुरा वासियों के लिए यह खबर एक भावनात्मक जुड़ाव भी लेकर आई है।

दरअसल, मनोज कुमार का मूल संबंध मथुरा जनपद के मांट क्षेत्र से था। उन्होंने स्वयं एक बार वृंदावन में आयोजित संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास संगीत एवं नृत्य समारोह के उद्घाटन अवसर पर यह बात साझा की थी कि उनके पूर्वज मथुरा से ही थे।

इतिहास की गहराइयों में जाएं तो, लगभग सात सौ वर्ष पूर्व, उनके पूर्वज मथुरा से एबटाबाद (जो अब पाकिस्तान में स्थित है) जा बसे थे। मनोज कुमार का यह पारिवारिक इतिहास न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन की एक अनकही कहानी को उजागर करता है, बल्कि मथुरा की सांस्कृतिक धरोहर से उनके गहरे संबंध को भी दर्शाता है।

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गौरतलब है कि, उक्त समारोह के आयोजन सचिव आचार्य गोपी गोस्वामी ने भी इस संबंध की पुष्टि की थी। उन्होंने बताया कि मनोज कुमार सारस्वत ब्राह्मण समुदाय से थे, जो मांट क्षेत्र में प्राचीन समय से विद्यमान रहा है। चूंकि स्वामी हरिदास जी, जिनकी कृपा से ठाकुर बांके बिहारी जी की प्रतिमा का प्राकट्य हुआ, स्वयं भी सारस्वत ब्राह्मण थे — अतः जब मनोज कुमार के पारिवारिक इतिहास की जानकारी मिली, तो आयोजन समिति और भी अधिक उत्सुक हो गई।

इसके बाद, मनोज कुमार ने स्वयं बताया कि उस काल में सारस्वत ब्राह्मणों की दो प्रमुख शाखाएं थीं—एक ने मथुरा से एबटाबाद की ओर प्रस्थान किया और दूसरी शाखा मुल्तान जा पहुंची। उन्होंने बताया कि स्वामी हरिदास जी के पिता, आशुधीर जी, मुल्तान प्रवास करने वाली शाखा से थे, जिनके वंशज आज भी ठाकुर बांके बिहारी मंदिर की सेवा-पूजा में संलग्न हैं। वहीं मनोज कुमार स्वयं एबटाबाद शाखा से संबंध रखते थे, जो भारत के विभाजन के समय दिल्ली आ बसे।

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इस प्रकार, मनोज कुमार का जीवन केवल सिनेमा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उनकी जड़ें भारतीय सांस्कृतिक विरासत से भी गहराई से जुड़ी थीं। मथुरा के नागरिकों के लिए यह गौरव का विषय है कि ऐसा महान अभिनेता उनके क्षेत्र से संबंध रखता था।

अंततः, मनोज कुमार की स्मृतियां अब केवल पर्दे पर नहीं, बल्कि मथुरा की हवाओं में भी जीवित रहेंगी। उनका जाना एक युग का अंत है, लेकिन उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।

➡️ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट

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