
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम सिर्फ एक राजनीतिक नारा नहीं बल्कि रामपुर की हकीकत बन चुका है। बीते 23 सितंबर को आजम खान सीतापुर जेल से रिहा हुए, लेकिन उनकी रिहाई के बाद से रामपुर के सौ से ज्यादा परिवार भय और खौफ में जीने को मजबूर हैं। अबरार, एहतेशाम और मेहरूनिशा जैसे लोग अपने ही घरों में कैद होकर रहने लगे हैं। वजह साफ है—जौहर विश्वविद्यालय का निर्माण और उससे जुड़े वे विवाद जिनमें गरीबों का आशियाना उजड़ गया।
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम और जौहर विश्वविद्यालय
दरअसल, आजम खान, दहशत का दूसरा नाम तब बना जब उनकी महत्वाकांक्षी योजना जौहर विश्वविद्यालय सामने आई। इस योजना के तहत रामपुर के कई इलाकों की जमीन जबरन कब्जाई गई। अबरार बताते हैं कि उनकी 2 बीघा जमीन सीधे-सीधे विश्वविद्यालय की कैंपस में शामिल कर ली गई। न तो कोई मुआवजा दिया गया और न ही पुनर्वास की व्यवस्था। इसके अलावा आजम खान के लोगों ने लगातार धमकियां दीं।
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम : अबरार का दर्द
अबरार की कहानी इस खौफ का असली चेहरा उजागर करती है। उनका कहना है कि उनका मकान नगर पालिका की जमीन बताकर तोड़ दिया गया। कई बार उन पर हमले भी किए गए। यही नहीं, अबरार अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर इतने डरे हुए हैं कि उन्होंने 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी को स्कूल भेजना बंद कर दिया है। यह बताता है कि आजम खान, दहशत का दूसरा नाम क्यों कहा जा रहा है।
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम : मेहरूनिशा की आपबीती
इसी बीच, मुस्लिम महिला मेहरूनिशा का दर्द भी सामने आता है। उनके पास मकान की रजिस्ट्री, बिजली-पानी के बिल तक मौजूद थे, लेकिन जब आजम खान मंत्री बने तो डूंगर बस्ती को कूड़ा निस्तारण के लिए आरक्षित घोषित कर दिया गया। दरअसल, यह फैसला गरीबों को उखाड़ फेंकने का जरिया था।
मेहरूनिशा बताती हैं कि उनके पति पर जानलेवा हमला कराया गया। जब वह थाने शिकायत करने गईं तो उनके साथ छेड़छाड़ और धमकी तक दी गई। यही वजह है कि लोग आज भी कहते हैं कि आजम खान, दहशत का दूसरा नाम है।
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम : क्यों डर में जी रहे हैं 100 परिवार
रामपुर की गलियों में आज भी खामोशी और खौफ का माहौल है। लगभग 100 परिवार ऐसे हैं जो आजम खान की रिहाई के बाद अपने घरों से बाहर निकलने से डरते हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा रहे, महिलाएं बाजार नहीं निकल पा रही हैं और मर्द रोज़गार की तलाश में जाने से कतराते हैं। हालांकि, प्रशासन दावा करता है कि सुरक्षा दी जा रही है, लेकिन लोगों को भरोसा नहीं है।
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम : राजनीतिक ताकत का खेल
वहीं, यह सवाल उठता है कि आखिर आजम खान को इतनी ताकत किसने दी? दरअसल, वह लंबे समय तक प्रदेश की राजनीति में मंत्री पद पर काबिज रहे। उनकी पार्टी में दबदबा इतना था कि पुलिस और प्रशासन भी उनकी इच्छाओं के आगे झुक जाता था। यही वजह है कि गरीब और कमजोर तबका हमेशा हाशिए पर धकेला गया। इसीलिए रामपुर के लोग आज कहने लगे हैं कि आजम खान, दहशत का दूसरा नाम है।
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम : महिलाओं और बच्चों पर असर
इसके अलावा, इस दहशत का सबसे बड़ा असर महिलाओं और बच्चों पर हुआ। मेहरूनिशा और अबरार जैसे लोग बताते हैं कि उनकी बेटियों की सुरक्षा हमेशा खतरे में रही। कई बार लड़कियों को परेशान किया गया, परिवारों को धमकाया गया। यही वजह है कि शिक्षा और रोजगार दोनों ही बुरी तरह प्रभावित हुए।
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम : प्रशासन की चुनौती
हालांकि प्रशासन ने कई बार यह दावा किया कि पीड़ितों की जमीन और मकानों का रिकॉर्ड खंगाला जाएगा, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अगर शासन और प्रशासन ने सही समय पर कार्रवाई की होती, तो शायद आजम खान का खौफ इतना गहरा न होता। लेकिन अब जब वह जेल से बाहर आ चुके हैं, तो डर का माहौल और बढ़ गया है।
आजम खान, दहशत का दूसरा नाम : आगे क्या?
अब सवाल यह है कि आखिर इन 100 परिवारों का भविष्य क्या होगा? क्या उन्हें फिर से उनका हक मिलेगा? या फिर उन्हें हमेशा दहशत और खौफ में ही जीना होगा? लोगों को अब कानून और न्यायपालिका से उम्मीद है कि उन्हें इंसाफ मिलेगा। लेकिन जब तक यह नहीं होता, तब तक रामपुर की गलियों में सिर्फ यही गूंज सुनाई देती है—आजम खान, दहशत का दूसरा नाम।
