अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद : जिला प्रशासन कब करेगा पर्दाफाश?

धर्मांतरण गोष्ठी में शामिल लोग, सभा स्थल पर भाषण और धार्मिक गतिविधियों का दृश्य

अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद की जड़ें

समाचार दर्पण 24.कॉम की टीम में जुड़ने का आमंत्रण पोस्टर, जिसमें हिमांशु मोदी का फोटो और संपर्क विवरण दिया गया है।
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संजय सिंह राणा की खास रिपोर्ट

चित्रकूट में इन दिनों सबसे चर्चित मुद्दा अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद बना हुआ है। जिला बार एसोसिएशन अध्यक्ष अशोक कुमार गुप्ता ने सदर कोतवाली कर्वी में पत्रकार संजय सिंह राणा और एक अन्य पत्रकार समेत एक व्यापारी पर एफआईआर दर्ज कराने की मांग की। वहीं, शिकायती पत्र में अवर अभियंता का नाम होने के बावजूद पुलिस ने उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की।

अशोक गुप्ता का आरोप है कि उनके घर पर हुए हमले में इन लोगों का हाथ हो सकता है। दूसरी ओर, पत्रकार संजय सिंह राणा ने भी पुलिस में प्रार्थना पत्र देकर अशोक गुप्ता और उनके बेटे प्रतीक गुप्ता के खिलाफ जांच की मांग की।

विवाद की शुरुआत कब और कैसे हुई?

अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद की शुरुआत 29 सितंबर से मानी जा रही है। पत्रकार संजय सिंह राणा ने आरोप लगाया कि अशोक गुप्ता और उनके बेटे ने एक अज्ञात नंबर से फोन कर उन्हें जातिसूचक शब्दों से गाली दी और जान से मारने की धमकी दी। इस मामले में उन्होंने सदर कोतवाली में लिखित शिकायत देकर न्याय की गुहार लगाई।

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अवैध निर्माण और विवाद की परतें

इस विवाद की असली जड़ें अवैध निर्माण कार्यों से जुड़ी हुई हैं। पत्रकार संजय सिंह राणा का कहना है कि अशोक गुप्ता द्वारा मंदाकिनी नदी किनारे और रेलवे स्टेशन के सामने अवैध निर्माण कराया गया था। जब इस मामले की खबरें प्रकाशित की गईं तो तत्कालीन जिलाधिकारी अभिषेक आनंद के आदेश पर विकास प्राधिकरण ने बड़ी कार्रवाई करते हुए भवन गिरा दिया।

इसके बाद भी अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद गहराता गया। हाल ही में अशोक गुप्ता द्वारा अपने निजी आवास पर बिना नक्शा पास कराए ही निर्माण कराया जा रहा था। विकास प्राधिकरण की टीम ने मौके पर जाकर काम रुकवाया और चालान काटा। इस दौरान अशोक गुप्ता ने अवर अभियंता से अभद्रता की और कथित तौर पर फर्जी मुकदमों की धमकी दी।

पत्रकारिता बनाम रसूख का टकराव

पत्रकार संजय सिंह राणा का कहना है कि उन्होंने केवल अवैध निर्माण से जुड़े सच को उजागर किया। लेकिन इसके बाद उन्हें निशाना बनाया गया और उनके खिलाफ एफआईआर कराई गई। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर सच्चाई सामने लाना ही विवाद है तो ऐसे विवाद तो पत्रकारों के साथ अक्सर होते रहते हैं।

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स्पष्ट है कि अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद पत्रकारिता और रसूखदार पद के बीच टकराव का उदाहरण है।

बार एसोसिएशन में भी बढ़ा विरोध

दिलचस्प बात यह है कि अब अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद केवल पत्रकारों तक सीमित नहीं रहा। जिला बार एसोसिएशन के अंदर भी अशोक गुप्ता को लेकर नाराजगी बढ़ रही है।

पूर्व अध्यक्ष सुरेश तिवारी ने कहा कि अशोक गुप्ता निजी स्वार्थ के लिए बार की मीटिंग बुलाते हैं लेकिन अधिवक्ताओं के हित के मुद्दों पर चुप रहते हैं। वहीं, अधिवक्ता बब्बू प्रसाद शुक्ला ने गंभीर आरोप लगाया कि अशोक गुप्ता ने अपने बेटे को लाइसेंस दिलाने और खुद को गनर उपलब्ध कराने के लिए सुनियोजित तरीके से अपने मकान पर हमला करवाया।

कई अधिवक्ताओं ने यह भी कहा कि पत्रकारों के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर गलत है और अशोक गुप्ता अपने स्वार्थ के लिए संगठन की गरिमा को धूमिल कर रहे हैं।

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जिला प्रशासन से बड़ी मांग

इस पूरे मामले पर अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिला प्रशासन कब सच्चाई उजागर करेगा।

पत्रकार संजय सिंह राणा ने स्पष्ट कहा कि प्रशासन को पहले यह जांच करनी चाहिए कि आखिर अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद की असली वजह क्या है।

अगर मामले की निष्पक्ष जांच की जाती है तो न केवल अवैध निर्माण के काले कारनामे उजागर होंगे बल्कि पत्रकारों पर झूठे मुकदमे दर्ज कराने की साजिश भी सामने आ जाएगी।

अशोक गुप्ता और संजय सिंह राणा विवाद केवल व्यक्तिगत झगड़ा नहीं है, बल्कि यह पत्रकारिता की स्वतंत्रता और प्रशासनिक निष्पक्षता से जुड़ा अहम मुद्दा बन चुका है।

एक तरफ पत्रकार आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें सच लिखने की सजा दी जा रही है, तो दूसरी ओर बार एसोसिएशन अध्यक्ष पर अवैध निर्माण और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप हैं।

अब सबकी नजर जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन पर टिकी है कि वे इस मामले की निष्पक्ष जांच कराकर सच को सामने लाते हैं या फिर यह विवाद भी राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थों की भेंट चढ़ जाता है।

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