Wednesday, August 6, 2025
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किशोर कुमार की 96वीं जयंती: खंडवा में ‘गौरव दिवस’, दूध-जलेबी से लेकर सुरों की श्रद्धांजलि तक

पुनीत नौटियाल की रिपोर्ट

खंडवा/भोपाल। बॉलीवुड के हरफनमौला गायक, अभिनेता और फिल्मकार किशोर कुमार की 96वीं जयंती इस बार उनके गृह नगर खंडवा में ‘गौरव दिवस’ के रूप में उल्लास और भावनाओं से लबरेज माहौल में मनाई गई। 4 अगस्त की सुबह से ही खंडवा स्थित उनकी समाधि पर प्रशंसकों का सैलाब उमड़ पड़ा। उनके अमर गीतों की स्वर लहरियों में श्रद्धा और स्मृति की मधुर बुनावट देखने को मिली।

दूध जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे” — यह केवल वाक्य नहीं, भाव था

किशोर कुमार का खंडवा से जुड़ाव सिर्फ जन्मस्थान भर नहीं था, बल्कि भावनात्मक स्तर पर यह उनका अंतिम ठिकाना भी बनना था। अक्सर वे कहते थे—”दूध जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे”। इसी कथन को साकार करने की कोशिश करते हुए, इस बार प्रशंसकों ने उनकी समाधि पर दूध-जलेबी का भोग लगाया और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।

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संगीत से भरी श्रद्धांजलि: सुरों में झलका स्नेह

इस आयोजन में संगीत जगत की कई हस्तियां शामिल हुईं। प्रसिद्ध पार्श्व गायक जॉली मुखर्जी, हिम्मत पंड्या, अमृता गोविलकर और उमेश कुमार गायकवाड़ ने किशोर दा को अपने सुरों में श्रद्धांजलि दी। इस दौरान उन्होंने मांग रखी कि किशोर कुमार को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। कार्यक्रम में कलेक्टर ऋषव गुप्ता, एसपी मनोज राय और विधायक कंचन तनवे जैसे प्रशासनिक अधिकारी भी उपस्थित रहे।

खंडवा की गलियों से शुरू हुआ था एक सुरमयी सफर

किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को खंडवा के एक बंगाली परिवार में हुआ था। बचपन का नाम आभास कुमार गांगुली था। प्रारंभिक शिक्षा खंडवा में लेने के बाद उन्होंने इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज से आगे की पढ़ाई की। बाद में मुंबई की ओर रुख किया और वहीं से हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपनी अनूठी छाप छोड़ दी।

अभिनय से गायकी तक: बहुआयामी प्रतिभा का सफर

हालांकि किशोर कुमार ने फिल्मी करियर की शुरुआत एक अभिनेता के तौर पर 1946 में फिल्म ‘शिकारी’ से की थी, लेकिन समय के साथ उनकी गायकी ने ही उन्हें अमर बना दिया। उनका गाया गीत ‘रूप तेरा मस्ताना’ (फिल्म आराधना) न सिर्फ उनका पहला फिल्मफेयर पुरस्कार लेकर आया, बल्कि उन्हें राजेश खन्ना की आवाज के रूप में स्थापित कर दिया।

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सरलता में जटिलता: यही थी किशोर की गायकी की असली पहचान

जब गायकी की बात आती है, तो किशोर कुमार की शैली न केवल सरल थी, बल्कि उसमें जटिलता का अद्भुत सम्मिश्रण भी था। उनके गीत ऐसे लगते थे जैसे कोई भी गा सकता है, लेकिन जब गाने की बारी आती तो हर सुर पर उनकी मौलिकता, उनकी रेंज और इमोशन की पकड़ सामने आ जाती। वे केवल गायक नहीं थे, बल्कि हर गीत में अभिनय करते थे।

शास्त्रीयता की सीमाएं तोड़कर बनाया लोकप्रिय गायन

यह बात कम ही लोग समझते हैं कि किशोर कुमार ने शास्त्रीय संगीत को अस्वीकार नहीं किया, बल्कि उसकी परंपरागत बंदिशों को तोड़कर उसे जनप्रिय रूप दिया। एक उदाहरण के तौर पर ‘पड़ोसन’ फिल्म का गीत ‘एक चतुर नार’ उल्लेखनीय है। मन्ना डे की शास्त्रीय प्रस्तुति के सामने किशोर दा का मजाकिया लेकिन स्वरात्मक जवाब भारतीय संगीत की गंभीरता और मनोरंजन का अद्वितीय संगम है।

संघर्ष और स्वाभिमान: किशोर कुमार की शख्सियत की नींव

किशोर कुमार अपने दौर के दिग्गज गायकों—रफ़ी, मुकेश, तलत महमूद—के बीच अपनी जगह बनाने में सफल रहे। उन्होंने कभी किसी की नकल नहीं की बल्कि अपनी राह खुद बनाई। यही नहीं, वे स्वाभिमानी व्यक्ति भी थे। आपातकाल के दौरान संजय गांधी की सभा में ना गाने के कारण आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गीतों को प्रतिबंधित कर दिया गया, लेकिन उन्होंने कोई समझौता नहीं किया।

जब अमिताभ बच्चन से हुआ मनमुटाव

किशोर कुमार ने अमिताभ बच्चन के लिए कई यादगार गाने गाए—’मुकद्दर का सिकंदर’, ‘डॉन’, ‘त्रिशूल’ जैसी फिल्मों में। लेकिन 1981 में किशोर दा अपनी फिल्म ‘ममता की छांव’ में बिग बी से एक कैमियो चाहते थे, जिसे अमिताभ ने समयाभाव के कारण ठुकरा दिया। इससे नाराज होकर किशोर कुमार ने कुछ समय तक उनके लिए गाना बंद कर दिया था। हालांकि बाद में दोनों में सुलह भी हो गई।

अंतिम गीत और अधूरी ख्वाहिश

किशोर कुमार का अंतिम गीत था—”आया आया तूफान…” फिल्म ‘तूफान’ के लिए, जो उनके निधन (1987) के दो साल बाद 1989 में रिलीज हुई। उनका निधन अचानक हुआ और खंडवा में बसने की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई।

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खंडवा में स्मारक की दरकार

आज भी किशोर कुमार का पैतृक घर खंडवा में जर्जर अवस्था में है। उनके प्रशंसकों की लगातार यह मांग रही है कि वहां एक संगीत संग्रहालय या स्मारक स्थापित किया जाए, ताकि भावी पीढ़ियां उनके योगदान से प्रेरणा ले सकें।

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किशोर कुमार सिर्फ एक गायक नहीं थे, वे एक संपूर्ण कलाकार, एक अद्भुत व्यक्तित्व और स्वतंत्र विचारों के प्रतीक थे। उनकी गायकी, उनका अभिनय, उनका हास्यबोध और जीवन के प्रति उनका नजरिया—सब कुछ उन्हें आम कलाकारों से अलग करता है। उनकी जयंती पर उन्हें याद करना केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा और संगीत को सलाम करने जैसा है।

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