चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश। गोविंदपुरम इलाके में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में कार्यरत अविनाश और उनकी बहन अंजलि की आत्महत्या की घटना ने पूरे शहर को झकझोर दिया है। यह केवल एक पारिवारिक त्रासदी नहीं, बल्कि रिश्तों की उन जटिल परतों की परछाई है जहां विश्वास टूटते हैं और जीवन नष्ट हो जाता है। अब इस मामले ने नया मोड़ तब ले लिया जब अंजलि की लिखी गई 22 पन्नों की एक डायरी—एक विस्तृत सुसाइड नोट—पुलिस के हाथ लगी है।
घटना का प्रारंभिक विवरण
बृहस्पतिवार को अविनाश और अंजलि ने आत्महत्या कर ली थी। उस समय घरवालों ने किसी भी प्रकार की पुलिस कार्रवाई से इंकार कर दिया था और पुलिस को सुसाइड नोट नहीं मिला था। लेकिन अगले ही दिन, जब पुलिस ने कमरे की तलाशी ली, तो अंजलि की लिखी गई डायरी के पन्ने सामने आए, जिसने पूरे मामले की दिशा ही बदल दी।
सुसाइड नोट: एक दर्दनाक अंत की साक्षी
अंजलि ने अपनी आत्महत्या से पहले 22 पन्नों में एक लंबा और विस्तार से लिखा गया सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उसने अपनी सौतेली मां मिस रितु और पिता सुखवीर सिंह को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया है। यही नहीं, उसने यह भी लिखा कि उसके खाते में जमा पैसे और पीएफ का हकदार केवल उसका दोस्त महिम होगा, और वही उसकी चिता को मुखाग्नि देगा।
“मेरे शव को मिस रितु और मिस्टर सुखवीर सिंह हाथ तक न लगाएं,”
– अंजलि (सुसाइड नोट से उद्धृत)
यह सुसाइड नोट अंजलि ने फोटो के रूप में अपने पिता, सौतेली मां और अन्य रिश्तेदारों को व्हाट्सएप पर भेज दिया था।
‘पिता केवल जन्मदाता रह गए’
सुसाइड नोट में अंजलि ने साफ शब्दों में अपने पिता के खिलाफ भावनात्मक आक्रोश व्यक्त किया। उसने लिखा कि पिता केवल जन्म देने तक सीमित रहे, कभी अपने बच्चों की भावनाओं को नहीं समझा। अपने भाई के संघर्ष और सफलता को भी उसने भावुक शब्दों में बयां किया और बताया कि कैसे सौतेली मां के सामने उसका जीवन नर्क बन गया था।
“तुम्हें कोई अधिकार नहीं मेरे शव को छूने का, तुम्हारे लिए तो दूसरी पत्नी ही सब कुछ थी,”– अंजलि
‘मेरे चरित्र पर सवाल उठे और पापा चुप रहे’
अंजलि ने लिखा कि उसकी सौतेली मां ने उसके चरित्र पर सवाल उठाए, उसे बदनाम किया और अपमानित किया। लेकिन दुख की बात यह रही कि उसके पिता इस पर भी चुप रहे और कभी उसका पक्ष नहीं लिया।
मानसिक उत्पीड़न और पारिवारिक उपेक्षा
सुसाइड नोट में अंजलि ने यह भी दर्शाया कि कैसे उसकी मां कमलेश की मौत के बाद, वह और उसका भाई लगातार मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार रहे। अपनी मामी और मामा को उसने उलाहना दिया कि उन्होंने कभी इन बच्चों का हाल तक नहीं जाना।
‘मुझे केवल महिम ने समझा’
अपने सुसाइड नोट में अंजलि ने दोस्त महिम के प्रति गहरी कृतज्ञता प्रकट की और उसे अपना सब कुछ सौंपने की बात कही। वह लिखती है कि महिम ने ही उसे समझा, साथ दिया और वह चाहती है कि वही उसे अंतिम विदाई दे।
एक और दुखद परत: मां की संदिग्ध मौत
इस मामले में एक और चौंकाने वाला पहलू तब जुड़ता है जब मृतकों के मामा देवेंद्र सिंह सामने आते हैं और बताते हैं कि अविनाश और अंजलि की मां कमलेश की भी संदिग्ध परिस्थितियों में 2007 में मृत्यु हो गई थी। आरोप है कि कमलेश ने अपने पति सुखवीर के प्रेम संबंधों का विरोध किया था, जिसके बाद उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और अंततः उन्होंने जहर खा लिया।
देवेंद्र सिंह ने अब कविनगर थाने में शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया है कि सुखवीर सिंह और उनकी दूसरी पत्नी रितु ने ही बच्चों को आत्महत्या के लिए उकसाया।
पुलिस की प्रतिक्रिया और अगला कदम
कविनगर एसीपी भास्कर वर्मा ने पुष्टि की है कि शिकायत मिल चुकी है और पूरे मामले की जांच की जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 2007 में कमलेश की संदिग्ध मौत के बाद कोई एफआईआर नहीं दर्ज कराई गई थी क्योंकि बच्चे तब नाबालिग थे। अब यह मामला संवेदनशीलता के साथ खोला जा रहा है।
“सभी तथ्यों की गहराई से जांच के बाद ही कोई वैधानिक कार्रवाई की जाएगी,”
– एसीपी भास्कर वर्मा
सुखवीर सिंह का पक्ष: ‘सब कुछ लुट गया’
वहीं दूसरी ओर, बच्चों के पिता सुखवीर सिंह ने मीडिया से बातचीत में खुद को पूरी तरह टूटा हुआ बताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने दूसरी शादी बच्चों की देखभाल के लिए की थी और आज वे ही बच्चे उन्हें कलंकित कर गए।
“बेटा आईबी में अधिकारी बन गया था, बेटी भी सफल थी। अब किसके लिए जियूं?”
– सुखवीर सिंह
परिवार, समाज और जिम्मेदारी
यह घटना सिर्फ दो युवाओं की आत्महत्या की नहीं, बल्कि उस सामाजिक ताने-बाने की विफलता की भी है जहां रिश्ते केवल नाम के रह जाते हैं। अंजलि और अविनाश की पीड़ा किसी अकेली कहानी की नहीं, बल्कि उन सैकड़ों बच्चों की है जो पारिवारिक कलह, उपेक्षा और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। इस मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कठोर कार्रवाई ही इस समाज को आईना दिखा सकती है।