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उत्तर प्रदेश BJP में नया अध्यक्ष कौन? जानें संभावित नाम और देरी की वजह

UP BJP का नया चेहरा कौन? जातीय जनगणना और सामाजिक समीकरणों से जुड़ी रणनीति

उत्तर प्रदेश में भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया लंबे समय से अटकी हुई है। जातीय संतुलन, सामाजिक समीकरण और राष्ट्रीय परिस्थितियां इस निर्णय में बाधा बन रही हैं। जानिए कौन-कौन हैं संभावित दावेदार और कब हो सकता है ऐलान।

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति लंबे समय से अधर में लटकी हुई है। 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए संगठन को फिर से मजबूत करना बेहद जरूरी हो गया है। हालांकि, नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन में लगातार देरी हो रही है, और इसके पीछे कई परतों में उलझे राजनीतिक और सामाजिक कारण हैं।

चयन में देरी की असली वजह क्या है?

भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो चुका है। इसके बावजूद अब तक नए अध्यक्ष की घोषणा नहीं हो सकी है। इस विलंब की प्रमुख वजह भाजपा की सामाजिक समीकरण साधने की रणनीतिक चुनौती है। समाजवादी पार्टी द्वारा PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठबंधन को मजबूती देने के प्रयासों ने भाजपा को सावधानीपूर्वक कदम उठाने के लिए विवश कर दिया है। पार्टी अब सवर्ण चेहरा आगे लाकर विपक्ष के जातीय विमर्श को हवा नहीं देना चाहती।

OBC और दलित नेताओं को लेकर मंथन जारी

संगठन के भीतर OBC और दलित वर्ग से कई नेताओं के नामों पर विचार हुआ है, लेकिन इनमें भी उपजातीय संतुलन को लेकर आम सहमति नहीं बन सकी है।

OBC वर्ग में लोध, कुर्मी और निषाद जैसी उपजातियों के बीच संतुलन बैठाना चुनौती बना हुआ है।

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वहीं दलित वर्ग में पासी और सोनकर जैसी जातियों में से किसे आगे किया जाए, इस पर भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है।

यह सामाजिक उलझन भाजपा की निर्णायकता को लगातार प्रभावित कर रही है।

राष्ट्रीय नेतृत्व की प्राथमिकताएं भी बनीं बाधा

प्रदेश अध्यक्ष चयन में देरी की एक और बड़ी वजह राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल भी है, जिसे पहले जून और फिर दिसंबर 2024 तक बढ़ाया गया। इसके बाद हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के चलते पार्टी का फोकस संगठनात्मक नियुक्तियों से हट गया है। सूत्रों की मानें तो जब तक जम्मू-कश्मीर और अन्य राज्यों में हालात सामान्य नहीं होते, उत्तर प्रदेश में भी कोई बड़ा फैसला नहीं लिया जाएगा।

जातीय जनगणना और सामाजिक संदेश देने की रणनीति

भाजपा ने हाल ही में जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया है, जिसे वह पिछड़े और दलित वर्ग के बीच अपनी बड़ी उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत कर रही है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को भी एक ‘सामाजिक संदेश’ के रूप में पेश करने की योजना है। यही कारण है कि पार्टी बेहद सतर्कता से आगे बढ़ रही है।

करणी सेना प्रकरण से दलित वोट बैंक में हलचल

करणी सेना द्वारा सपा सांसद रामजीलाल सुमन के खिलाफ की गई तलवारबाजी और विरोध प्रदर्शन ने भाजपा को यह संकेत दे दिया है कि दलित वर्ग में असंतोष गहराता जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मिले फीडबैक ने पार्टी को आगाह किया है कि बिना संतुलित निर्णय के यह नाराजगी और बढ़ सकती है।

संभावित समय-सीमा और दावेदारों की सूची

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पार्टी सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बीच अंतिम दौर की बातचीत के बाद ही नाम तय किया जाएगा। फिलहाल उम्मीद जताई जा रही है कि मई मध्य या जून की शुरुआत में इस पर अंतिम फैसला हो सकता है।

संभावित दावेदारों की सूची 

ब्राह्मण चेहरा

डॉ. दिनेश शर्मा: पूर्व उपमुख्यमंत्री, वर्तमान में राज्यसभा सांसद, संगठन में अनुभव के साथ लखनऊ के पूर्व महापौर।

दलित वर्ग से

विद्यासागर सोनकर: विधान परिषद सदस्य, पूर्व सांसद, प्रदेश महामंत्री रह चुके।

विनोद सोनकर: कौशाम्बी से निवर्तमान सांसद, भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री।

OBC वर्ग से

बी.एल. वर्मा: केंद्र में राज्य मंत्री, ब्रज क्षेत्र में मजबूत पकड़।

स्वतंत्र देव सिंह: जल शक्ति मंत्री, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष।

धर्मपाल सिंह: कैबिनेट मंत्री, पांच बार विधायक।

बाबूराम निषाद: राज्यसभा सांसद, संगठन में विभिन्न पदों पर कार्यरत।

साध्वी निरंजन ज्योति: पूर्व केंद्रीय मंत्री, पार्टी की वरिष्ठ नेत्री।

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को केवल संगठनात्मक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक सामाजिक संदेश के रूप में देख रही है। जातीय समीकरण, सामाजिक संतुलन और राष्ट्रीय परिस्थितियां मिलकर इस निर्णय को अत्यंत संवेदनशील बना देती हैं। आने वाले हफ्तों में भाजपा का यह निर्णय प्रदेश की राजनीति की दिशा तय करने में निर्णायक साबित हो सकता है।

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