राजनीति की रसोई में जनता की कढ़ाही — मिर्ची, बड़ी तीखी, वादे मीठे, और सच्चाई धीमी आँच पर





तीखा राजनीतिक व्यंग्य कॉलम | बड़ी तीखी है मिर्ची









भारतीय संसद भवन के सामने रखी लाल मिर्च राजनीति की तीखी तस्वीरण

कॉलम: लेख- कुंवर पाल । बड़ी तीखी है मिर्ची — देश और प्रदेश की राजनीति पर तीखा व्यंग्य।

भारतीय राजनीति की रसोई का वास्तविक स्वाद — जहां चुनावी वादे मीठे होते हैं,
भाषा मिर्ची जैसी तेज़, मीडिया आँच बढ़ाता है और जनता हर बार कढ़ाही में पक जाती है।

भाग 1 — चुनावी मसाला, बयानबाज़ी और जनता की कढ़ाही

देश में राजनीति का स्वाद ऐसा हो चुका है कि यदि आप डायबिटीज़ के मरीज हों तब भी मसालेदार सुर्खियों के बिना चैन नहीं आता…

सुबह न्यूज़ की चुस्कियाँ, दोपहर में बयानबाज़ी का तड़का और शाम को सोशल मीडिया पर वायरल मीम — पूरा लोकतांत्रिक भोजन…

चुनावी मौसम: पहला गरम छौंक

चुनाव अब त्यौहार कम, रियलिटी शो ज़्यादा लगने लगे हैं…

दल–बदल और खरीद–फरोख्त

राजनीति में दलबदल अब स्थापित व्यंजन है — सिद्धांत, विचार और घोषणा दलों के हिसाब से बदल जाते हैं…

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बयानबाज़ी: लाल मिर्च पाउडर

महंगाई पर सवाल — जवाब “देश सुरक्षित है।” बेरोज़गारी पर सवाल — “हमारी संस्कृति महान है।”…

जनता — जो हर बार पक जाती है

चुनाव से पहले जनता “मालिक”, चुनाव के बाद “डेटा” बन जाती है…

सोशल मीडिया — तड़का कड़क

राजनीति रैलियों से ज़्यादा टाइमलाइन पर लड़ाई बन चुकी है…

विकास — कथा और कॉपीराइट

विकास भाषणों में हाई–रेजोल्यूशन, जमीन पर लो–क्वालिटी…

विपक्ष — नमक चखा तो अच्छा लगेगा

विपक्ष इतना कमज़ोर कि सत्ता भी कभी–कभी बोर हो जाती है…

देश चलता जनता के भरोसे पर, और चुनाव चलते जनता की भूलने की क्षमता पर।

EVM, मीडिया, सोशल मीडिया और युवा मतदाता की मिर्ची

अब बात उन मसालों की जिन पर सबसे ज़्यादा बहस होती है — EVM, मीडिया, सोशल मीडिया और युवा…

EVM — बटन जनता दबाए, सस्पेंस नेताओं का बढ़े

जीत मिले तो EVM लोकतंत्र का गौरव, हार मिले तो EVM साजिश का प्रतीक…

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मीडिया — न्यूज़ कम, मिर्च–मसाला ज़्यादा

एंकर की आवाज़, धुआँदार टैगलाइन और उछलते ग्राफिक्स — जानकारी कम, तमाशा ज़्यादा…

सोशल मीडिया चुनाव — विचार नहीं, फॉलोअर्स की जंग

आइकन बनाम आइकन, मीम बनाम मीम — लोकतंत्र अब ट्रेंडिंग टैब में मापा जा रहा है…

युवा — सबसे बड़ा वोट बैंक, सबसे कम सुनवाई

चुनाव से पहले “युवा देश का भविष्य हैं”, चुनाव के बाद — “धैर्य रखें”…

घटनाएँ बदलती हैं, स्क्रिप्ट वही रहती है

नारे बदलते हैं, चेहरे बदलते हैं लेकिन जनता हर बार फिर से तवे पर…

लोकतंत्र जनता के भरोसे चलता है, पर नेताओं की राजनीति जनता की याददाश्त पर।

यह रचना व्यंग्यात्मक है — उद्देश्य किसी दल, नेता या विचारधारा को निशाना बनाना नहीं,
बल्कि राजनीति, मीडिया और समाज पर स्वस्थ चिंतन को प्रेरित करना है।


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