भारत-नेपाल सीमा पर चैरिटी की आड़ में आईएसआई की हलचल तेज? सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट मोड पर

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट, रुपईडीहा

रुपईडीहा।बहराइच। भारत-नेपाल सीमा पर चैरिटी, अनुदान, मेडिकल कैंप और सामाजिक सेवा कार्यक्रमों की आड़ में
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की सक्रियता बढ़ने की आशंका ने सुरक्षा एजेंसियों की
चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, सीमा से सटे नेपाली इलाकों में पिछले कुछ समय से लगातार ऐसे
विदेशी एनजीओ सक्रिय दिखाई दे रहे हैं, जो खुद को सेवा और मानवता के नाम पर चलने वाले
संगठन बताते हैं, लेकिन उनकी गतिविधियों पर प्रश्नचिह्न लगने लगा है।

उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार, नेपाल की ओर से काम कर रहे इन संगठनों के कार्यक्रमों में
पाकिस्तानी नागरिकों की भागीदारी भी देखी जा रही है। ऐसे में भारतीय सुरक्षा एजेंसियां आशंकित हैं
कि कहीं मानव सेवा की आड़ में खुफिया नेटवर्क तैयार करने की कोशिश तो नहीं हो रही।
यही कारण है कि भारत-नेपाल सीमा पर तैनात एजेंसियों ने चौकसी बढ़ा दी है और हर संदिग्ध गतिविधि
पर बारीकी से नजर रखी जा रही है।

चैरिटी, अनुदान और मेडिकल कैंप के नाम पर सक्रिय विदेशी एनजीओ

सीमा पर तैनात खुफिया एजेंसियों को हाल ही में नेपाल की ओर से मिले सूत्रों ने सतर्क किया।
सूचना के अनुसार, बीते दिनों से नेपाल में कुछ ऐसे विदेशी एनजीओ लगातार कार्यक्रम कर रहे हैं, जो
अनुदान वितरण, सामाजिक सेवा, स्वास्थ्य शिविर और चैरिटी के नाम पर ग्रामीण और
सीमावर्ती आबादी तक पहुँच बना रहे हैं। पहली नजर में ये गतिविधियां सामान्य और मानवीय लगती हैं,
लेकिन जब इनके फंड के स्रोत, प्रतिभागियों की राष्ट्रीयता और कार्यक्रमों के स्थानों की
पड़ताल शुरू हुई, तो कई गंभीर सवाल खड़े हो गए।

बताया जा रहा है कि इन एनजीओ के अधिकांश कार्यक्रम भारतीय सीमा से कुछ ही दूरी पर आयोजित किए जाते हैं।
यह दूरी इतनी कम होती है कि सीमा पार आवागमन, स्थानीय संपर्क और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए
यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील हो जाता है। सुरक्षा एजेंसियों को आशंका है कि इन संगठनों में शामिल
कुछ विदेशी स्वयंसेवक वास्तव में ऐसे लोग हो सकते हैं, जिनका मकसद स्थानीय लोगों में
घुलमिल कर खुफिया जानकारी जुटाना है।

खास बात यह भी है कि इन कार्यक्रमों में कई बार पाकिस्तानी मूल के लोग भी भाग ले रहे हैं।
ऐसे में यह शंका और गहरी हो जाती है कि कहीं आईएसआई समर्थित नेटवर्क नेपाल की जमीन
को सुरक्षित ठिकाने के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश तो नहीं कर रहा।

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नेपालगंज से पकड़ा गया पाकिस्तानी मूल का हस्सन अमान सलीम

हाल के दिनों में सामने आए एक मामले ने इन आशंकाओं को और मजबूत कर दिया है।
विगत दिनों एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) और एटीएस (एंटी टेररिज्म स्क्वॉड) की
संयुक्त टीम ने नेपालगंज से पाकिस्तान मूल के हस्सन अमान सलीम को पकड़ा था।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार, वह एक मेडिकल कैंप में भाग लेने के उद्देश्य से नेपाल आया हुआ था।

शुरुआती तौर पर इसे एक सामान्य गतिविधि के रूप में देखने की कोशिश हुई, लेकिन दस्तावेजों और
पृष्ठभूमि की जांच के बाद मामला संवेदनशील हो गया। हस्सन अमान सलीम किस संगठन के माध्यम से
नेपाल पहुंचा, उसके संपर्क किन-किन लोगों से थे, और मेडिकल कैंप की आड़ में वह कौन सी जानकारी
इकट्ठा कर रहा था, इन सभी बिंदुओं की गहनता से जांच जारी है।

जांच एजेंसियों का कहना है कि फिलहाल इस मामले के कई पहलुओं पर काम किया जा रहा है।
एजेंसियां यह भी खंगाल रही हैं कि क्या वह अकेले आया था या किसी संगठित नेटवर्क का हिस्सा था।
अधिकारियों के अनुसार, “जांच पूरी होने के बाद ही पूरी तस्वीर साफ हो पाएगी, फिलहाल हर संभावना को
गंभीरता से परखा जा रहा है।”

सीमा पर बढ़ी गश्त, मजबूत हुआ खुफिया नेटवर्क

इन घटनाओं के बाद भारत-नेपाल सीमा पर तैनात सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी रणनीति को और
मजबूत करना शुरू कर दिया है। एसएसबी की 42वीं वाहिनी के कमांडेंट
गंगा सिंह उदावत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए
सीमा पर गश्त, निगरानी और खुफिया नेटवर्क को और अधिक सशक्त किया जा रहा है।

सीमावर्ती गांवों, पगडंडियों, अनौपचारिक रास्तों और छोटी-बड़ी सभी सीमा चौकियों को सतर्क रहने
के कड़े निर्देश जारी किए गए हैं। स्थानीय सूचना तंत्र को सक्रिय किया जा रहा है, ताकि किसी
भी संदिग्ध व्यक्ति, वाहन या गतिविधि के बारे में तुरंत जानकारी मिल सके।
ग्रामीणों को भी जागरूक किया जा रहा है कि वे चैरिटी या मदद के नाम पर आने वाले
अपरिचित विदेशियों या संगठनों की सूचना समय रहते सुरक्षा एजेंसियों तक पहुँचाएं।

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कमांडेंट गंगा सिंह उदावत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सीमा पर तैनात जवानों को
प्रो-एक्टिव पेट्रोलिंग करने, रात के समय गश्त बढ़ाने और संदिग्ध गतिविधियों की
वीडियो व फोटो रिकॉर्डिंग करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि किसी भी छोटी से छोटी गतिविधि
को नजरअंदाज न किया जाए।

सीमा सुरक्षा के सामने नई चुनौती: मानवीय सेवा बनाम खुफिया नेटवर्क

भारत-नेपाल सीमा पर व्यापार, पर्यटन, धार्मिक यात्रा और सामाजिक संपर्क के नाम पर
आवागमन स्वाभाविक रूप से काफी सक्रिय रहता है। यही वजह है कि शत्रु देशों की खुफिया
एजेंसियां अक्सर ऐसे क्षेत्रों को सॉफ्ट टारगेट के रूप में देखती हैं। अब जब चैरिटी, मेडिकल कैंप
और एनजीओ की गतिविधियां बढ़ी हैं, तो सुरक्षा एजेंसियों के सामने एक दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है।

एक ओर असली और ईमानदार सामाजिक संगठनों के कामकाज को बाधित किए बिना उन्हें सहयोग देना है,
वहीं दूसरी ओर आईएसआई या किसी भी आतंकी संगठन की घुसपैठ को हर हाल में रोकना भी उतना ही जरूरी है।
ऐसे में एजेंसियों को इंटेलिजेंस-आधारित सटीक कार्रवाई पर अधिक जोर देना पड़ रहा है, ताकि
genuine चैरिटी कार्यों को नुकसान न पहुंचे और संदिग्ध तत्त्वों पर भी शिकंजा कसता रहे।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते इन गतिविधियों पर लगाम न लगाई गई, तो
सीमावर्ती इलाकों की सुरक्षा ही नहीं, बल्कि स्थानीय युवाओं में कट्टरता और
भ्रामक प्रचार फैलाने की कोशिशें भी तेज हो सकती हैं। इसलिए वर्तमान स्थिति में
जन-जागरूकता, सतर्कता और सटीक खुफिया इनपुट को ही सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है।

स्थानीय लोगों की भूमिका: संदिग्ध गतिविधियों की सूचना सबसे बड़ा सहयोग

सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि सीमावर्ती गांवों के लोग ही उनकी सबसे बड़ी ताकत हैं।
यदि स्थानीय निवासी सतर्क रहें और अनजान संगठनों की गतिविधियों, असामान्य चहल-पहल या
संदिग्ध लोगों के बारे में समय पर सूचना दें, तो किसी भी खतरनाक साजिश को समय रहते नाकाम किया
जा सकता है।

इसलिए एसएसबी, पुलिस और खुफिया एजेंसियां नियमित रूप से सीमा क्षेत्र के गांवों में
जनसंपर्क और जागरूकता कार्यक्रम चलाने की तैयारी में हैं। लोगों से यह अपील की जा रही है
कि वे चैरिटी के नाम पर आने वाले किसी भी विदेशी या संगठन से पहले उसकी वास्तविकता के बारे में
जानकारी लें, और थोड़ी भी शंका होने पर तुरंत नजदीकी चौकी को इसकी सूचना दें।

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कुल मिलाकर, रुपईडीहा और आसपास का पूरा सीमावर्ती इलाका इस समय
उच्च सतर्कता की स्थिति में है। चैरिटी और सेवा कार्यों की आड़ में चल रही
संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखते हुए सुरक्षा एजेंसियां यह सुनिश्चित करने में जुटी हैं कि
भारत-नेपाल की खुली और मैत्रीपूर्ण सीमा का दुरुपयोग किसी भी कीमत पर न हो सके।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

भारत-नेपाल सीमा पर किन गतिविधियों पर विशेष नजर रखी जा रही है?

सीमा पर सुरक्षा एजेंसियां चैरिटी, अनुदान, मेडिकल कैंप, सामाजिक सेवा कार्यक्रमों और
विदेशी एनजीओ की सभी गतिविधियों पर विशेष नजर रख रही हैं। खासकर उन कार्यक्रमों पर,
जो भारतीय सीमा से कम दूरी पर आयोजित किए जा रहे हैं और जिनमें विदेशी नागरिक शामिल हैं।

पाकिस्तानी मूल के हस्सन अमान सलीम का मामला क्यों महत्वपूर्ण माना जा रहा है?

हस्सन अमान सलीम नेपालगंज में एक मेडिकल कैंप में भाग लेने के नाम पर आया था,
लेकिन उसकी पृष्ठभूमि, संपर्कों और यात्रा के उद्देश्य को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं।
इसी वजह से एसएसबी और एटीएस की जांच टीम इस मामले को संभावित खुफिया गतिविधि की
कड़ी के रूप में भी परख रही है।

एसएसबी की 42वीं वाहिनी द्वारा क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

एसएसबी की 42वीं वाहिनी ने सीमा पर गश्त बढ़ाने, रात के समय विशेष निगरानी रखने,
खुफिया नेटवर्क को मजबूत करने और सीमा चौकियों को हर संदिग्ध गतिविधि पर तुरंत
प्रतिक्रिया देने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही स्थानीय लोगों को जागरूक करने की
भी योजना बनाई जा रही है।

स्थानीय लोगों की क्या भूमिका हो सकती है?

स्थानीय निवासी किसी भी संदिग्ध व्यक्ति, अपरिचित संगठन या असामान्य गतिविधि की
जानकारी तुरंत सुरक्षा एजेंसियों तक पहुंचाकर बड़ी मदद कर सकते हैं। उनकी छोटी सी
सतर्कता किसी बड़ी साजिश को नाकाम करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

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