संजय सिंह रणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। ‘जीत आपकी – चलो गांव की ओर’ जागरूकता अभियान के संस्थापक एवं अध्यक्ष संजय सिंह राणा द्वारा चलाए जा रहे ग्रामीण जनजागरण कार्यक्रम ने अब चित्रकूट के दूरस्थ क्षेत्रों, विशेषकर पाठा इलाके में एक नई सोच और नई बहस को जन्म दे दिया है। यह अभियान केवल नारों तक सीमित नहीं है, बल्कि जमीनी हकीकत को सामने लाने और आम लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का एक सतत प्रयास बन चुका है।
अभियान की टीम लगातार चित्रकूट जिला मुख्यालय से दूर बसे गांवों में पहुंचकर लोगों को सरकारी योजनाओं, बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा की वास्तविक स्थिति के बारे में जागरूक कर रही है। विशेषकर पाठा क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं की लचर व्यवस्था और उच्च शिक्षा के अभाव ने युवा पीढ़ी के सामने गंभीर संकट खड़ा कर रखा है।
इसी सिलसिले में आज की चर्चा का प्रमुख मुद्दा मानिकपुर पठारी क्षेत्र में विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर उभर कर सामने आया। स्थानीय ग्रामीणों, युवाओं, समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों की एकजुट राय है कि अगर पाठा क्षेत्र में विश्वविद्यालय का निर्माण हो जाए, तो न केवल यहां के युवाओं का शैक्षिक पलायन रुकेगा, बल्कि पूरे इलाके की दिशा और दशा बदल सकती है।
पाठा की पीड़ा: दस्यु प्रभावित इलाका और शिक्षा से दूरी
पाठा क्षेत्र हमेशा से दस्युओं की चपेट में रहा है। देश को आज़ादी मिले दशकों बीत गए, लेकिन इस इलाके के हालात अपने मूल प्रश्नों पर आज भी वहीं के वहीं खड़े हैं। कभी यहां दस्युओं का खौफ छाया रहता था, तो आज भी यहां के बुनियादी सवाल—सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा—अनुत्तरित ही हैं।
यहां का शिक्षा स्तर आज भी कई गांवों में शून्य के बराबर है। हालात इतने खराब हैं कि पाठा के अनेक इलाकों में चौथी पीढ़ी तक स्कूल का मुंह नहीं देख पाई है। जहां कहीं सरकारी स्कूल हैं, वहां के बच्चे किसी तरह प्राथमिक से माध्यमिक तक की पढ़ाई तो कर लेते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए उन्हें न तो उचित माध्यम मिलता है और न ही आवश्यक संसाधन।
नतीजतन, जिन बच्चों में आगे बढ़ने की क्षमता और प्रतिभा है, वे भी अवसर न मिलने के कारण पीछे छूट जाते हैं। परिवारों को मजबूरी में अपने बच्चों के भविष्य के लिए बड़े शहरों की ओर पलायन करना पड़ता है। यह पलायन केवल भूगोल का बदलाव नहीं, बल्कि सपनों और संबंधों के टूटने की कहानी भी बन जाता है।
उच्च शिक्षा के नाम पर बुंदेलखंड की उपेक्षा
उच्च शिक्षा के केंद्रों की उपलब्धता के मामले में बुंदेलखंड और उसमें भी पाठा क्षेत्र सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाता है। जबकि दूसरी ओर, मौजूदा समय में स्कूल या कॉलेज खोलना एक बड़े उद्योग का रूप ले चुका है।
निजी शिक्षण संस्थान कमाई की दृष्टि से ऐसी जगहों पर जाना पसंद करते हैं, जहां उन्हें दूर-दराज़ से छात्रों को आकर्षित करने का मौका मिले। इसी कारण वे नोएडा, कोटा, भोपाल या अन्य बड़े शहरों में कॉलेज व विश्वविद्यालय खोलते हैं, लेकिन बुंदेलखंड और पाठा जैसे क्षेत्रों की ओर उनकी नज़र ही नहीं जाती।
ऐसे में सरकारों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। ज़रूरत इस बात की है कि कॉलेज या विश्वविद्यालय खोलने की प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी और ईमानदार बनाया जाए। खासकर ऐसे पिछड़े क्षेत्रों में ईमानदार और संवेदनशील लोगों को आगे लाकर शिक्षा के मजबूत केंद्र स्थापित किए जाएं। लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और नीयत का साफ होना अनिवार्य है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि जिस दिन हमारी शिक्षा व्यवस्था राजनीति के दबाव और लाभ-हानि की गणना से मुक्त हो जाएगी, उसी दिन हम शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श मॉडल तैयार कर पाएंगे।
‘चलो गांव की ओर’ अभियान: गांव-गांव जागरूकता की अलख
‘जीत आपकी – चलो गांव की ओर’ जागरूकता अभियान के तहत संजय सिंह राणा और उनकी टीम लगातार गांव-गांव पहुंचकर लोगों से सीधा संवाद कर रही है। वे सिर्फ समस्याएं गिनवाने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समाधान की दिशा में भी जनमत तैयार कर रहे हैं।
अभियान का मुख्य उद्देश्य है—
- ग्रामीणों को सरकारी जनकल्याणकारी योजनाओं की सही जानकारी देना,
- स्वास्थ्य और शिक्षा की बदहाल स्थिति को उजागर करना,
- और बुनियादी सुविधाओं के लिए संगठित होकर आवाज उठाने की प्रेरणा देना।

यही कारण है कि अब यह पहल केवल जागरूकता कार्यक्रम भर न रहकर, पाठा क्षेत्र की अस्मिता और भविष्य से जुड़ा एक जनांदोलन का रूप लेती दिखाई दे रही है।

“पाठा में विश्वविद्यालय बने तो रुकेगा युवाओं का पलायन” – समाजसेवी मुकेश कुमार
रुखमा बुजुर्ग के निवासी युवा समाजसेवी मुकेश कुमार कहते हैं, “अगर पाठा में विश्वविद्यालय की स्थापना होती है तो इस क्षेत्र के हजारों युवाओं को सीधा लाभ मिलेगा और उनका पलायन काफी हद तक रुक जाएगा।”
वे आगे कहते हैं, “दशकों से यहां डकैतों की समस्या रही है, लेकिन इसका मूल कारण उच्च शिक्षा का अभाव है। जहां युवाओं को सही दिशा और अवसर नहीं मिलते, वहां भटकाव और अपराध पनपते हैं। अगर पाठा में विश्वविद्यालय स्थापित हुआ, तो निस्संदेह यहां की कई सामाजिक समस्याएं जड़ से कमजोर हो जाएंगी।”
मुकेश कुमार का कहना है कि कोल आदिवासी सहित हजारों युवा उच्च शिक्षा से या तो दूर रह जाते हैं या फिर गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई नहीं कर पाते। आर्थिक तंगी और दूरी के कारण वे बड़े शहरों तक पहुंच ही नहीं पाते। ऐसे में अगर घर के नजदीक विश्वविद्यालय हो, तो वे न सिर्फ डिग्री हासिल कर सकेंगे, बल्कि कौशल विकास, अनुसंधान और रोजगार के नए अवसरों से भी जुड़ पाएंगे।
उनका साफ कहना है, “पाठा के युवाओं को केवल दया या सहानुभूति नहीं, बल्कि अवसर चाहिए। विश्वविद्यालय यहां के युवाओं को अवसर देने की दिशा में सबसे बड़ा कदम साबित हो सकता है। तब पाठा के युवा भी देश के विकास में बराबर साझेदारी निभा सकेंगे।”
विकास की राजनीति बनाम पाठा की हकीकत
स्थानीय लोग यह भी कहते हैं कि आज़ादी के 70 से अधिक वर्ष बीत जाने के बाद भी पाठा की तस्वीर में अपेक्षित बदलाव नहीं आया है। हर चुनाव में इस क्षेत्र के पिछड़ेपन का ज़िक्र होता है, विकास के वादे किए जाते हैं, योजनाओं की घोषणाएं होती हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही पाठा की बदहाली को भुला दिया जाता है।
यही वजह है कि अब बुंदेलखंड को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग के साथ-साथ पाठा में उच्च शिक्षा केंद्र यानी विश्वविद्यालय की मांग भी तेज़ी से उठने लगी है। युवाओं का मानना है कि जब तक शिक्षा की मजबूत नींव नहीं डाली जाएगी, तब तक किसी भी तरह के विकास की बातें आधी-अधूरी ही रहेंगी।
विश्वविद्यालय: पाठा के भविष्य का दरवाज़ा
यदि पाठा में विश्वविद्यालय की स्थापना होती है, तो उसके बहुआयामी प्रभाव देखने को मिल सकते हैं—
- हजारों युवाओं का पलायन रुकेगा,
- स्थानीय स्तर पर रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे,
- छात्राओं की शिक्षा में भागीदारी बढ़ेगी,
- कोल सहित अन्य आदिवासी समुदायों का शैक्षिक सशक्तिकरण होगा,
- शिक्षित समाज के कारण अपराध और दस्यु संस्कृति को निर्णायक चोट पहुंचेगी।
युवा और समाजसेवी यह मानते हैं कि पाठा में विश्वविद्यालय केवल एक भवन या संस्थान नहीं होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद, सम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक बनेगा।
आशा, सवाल और भविष्य की दिशा
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार और नीति निर्माता पाठा की इस आवाज़ को सुनेंगे? क्या उच्च शिक्षा के केंद्र के रूप में पाठा को उसका अधिकार मिल पाएगा? या फिर यह क्षेत्र यूं ही पीछे छूटते रहकर विकास की सूचियों में सिर्फ आंकड़ों तक सीमित रह जाएगा?
स्थानीय युवाओं और जागरूक नागरिकों का कहना है— “अगर शिक्षा को सच्चे अर्थों में प्राथमिकता दी जाए और पाठा में विश्वविद्यालय की स्थापना हो, तो यह क्षेत्र केवल बुंदेलखंड ही नहीं, पूरे प्रदेश के लिए एक आदर्श शिक्षा मॉडल बन सकता है।”
फिलहाल, ‘चलो गांव की ओर’ जैसे अभियान पाठा के लोगों के भीतर नई चेतना और आत्मविश्वास जगा रहे हैं। गांव-गांव उठती यह मांग साफ कह रही है—
“अब पाठा को वादों की नहीं, विश्वविद्यालय की ज़रूरत है।”






