रिपोर्टर: अनुराग गुप्ता
उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हुई भयंकर और अनियोजित बारिश ने राज्य के किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के पहले दिनों तक हुई लगातार बारिश ने खरीफ सीजन की तैयार फसलों को तबाह कर दिया।
खेतों में कटाई को तैयार धान, अरहर, सोयाबीन, और सब्ज़ियों की फसलें पानी में डूब गईं। कई जिलों में तो खेत तालाबों में बदल गए हैं, जिससे किसानों के सामने अगली रबी फसल की तैयारी का संकट भी गहराता जा रहा है।
मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 36 से अधिक जिलों में औसतन 30 से 90 मिमी तक बारिश दर्ज की गई है, जो सामान्य औसत से 42% अधिक है।
इस अत्यधिक वर्षा का सीधा असर लगभग 27 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर पड़ा है — जो राज्य के कुल खरीफ क्षेत्रफल का लगभग 22% हिस्सा है।
📍पूर्वांचल और तराई क्षेत्र में सबसे ज्यादा नुकसान
पूर्वांचल, अवध और तराई के इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। मऊ, देवरिया, अमेठी, कौशांबी, प्रयागराज, और बहराइच जिलों में जलभराव के कारण किसानों को सबसे बड़ा झटका लगा है।
इन इलाकों में धान की फसल की कटाई के लिए किसान तैयार थे, लेकिन खेतों में दो-दो फीट तक पानी भर गया। कई किसानों ने बताया कि फसलें सड़ने लगी हैं और कटाई मशीनें खेतों में नहीं जा पा रही हैं।
देवरिया जिले के किसान रामकिशोर यादव बताते हैं — “धान की कटाई बस दो दिन दूर थी, तभी ऐसी बारिश आ गई कि अब पूरा खेत पानी में है। अगर धूप जल्दी नहीं निकली तो धान पूरी तरह खराब हो जाएगा।”
वहीं अमेठी की सीमा देवी कहती हैं — “पिछले साल सूखा था, इस साल बाढ़ जैसी बारिश। हर बार या तो आसमान धोखा देता है या सरकार।”
📊 मुख्य आंकड़े — बारिश से बर्बादी
यूपी में कृषि को सबसे बड़ा झटका, अरबों की क्षति
27 लाख
हेक्टेयर
अनुमानित प्रभावित कृषि क्षेत्र
₹3,900–4,000
करोड़
प्रारंभिक आर्थिक नुकसान
+42%
अधिक वर्षा
औसत से अधिक बारिश
1.25 करोड़
किसान
PMFBY योजना से जुड़े
💰 किसानों को भारी आर्थिक झटका
प्रदेश के कई जिलों में किसानों की उपज पानी में डूबने के कारण लगभग ₹4,000 करोड़ का नुकसान बताया जा रहा है। धान के दाने काले पड़ने लगे हैं और खुले में रखी अरहर की फली सड़ रही है।
सब्ज़ी उत्पादक किसानों को भी बड़ा नुकसान हुआ है, क्योंकि टमाटर, बैंगन और मिर्च की फसलें गलने लगी हैं। इससे अगले हफ्तों में सब्जियों के दाम बढ़ने की आशंका है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लगातार वर्षा ने मिट्टी की संरचना को भी नुकसान पहुंचाया है। मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी से पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं। अगर अगले कुछ दिनों तक धूप नहीं निकली तो नुकसान और बढ़ सकता है।
🚜 राहत और सर्वे की प्रक्रिया शुरू
राज्य सरकार ने किसानों के नुकसान का आकलन करने के लिए राजस्व विभाग और कृषि विभाग की संयुक्त टीमें गठित की हैं। आपदा राहत कोष से ₹500 करोड़ जारी करने की घोषणा की गई है।
वहीं, प्रभावित किसानों से ऑनलाइन आवेदन लेकर फसल बीमा का दावा करने की प्रक्रिया भी शुरू की जा रही है।
कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया — “जिन किसानों की फसल का नुकसान 33% से अधिक है, उन्हें तत्काल राहत दी जाएगी। 50% से अधिक नुकसान पर फसल बीमा योजना के तहत भुगतान होगा।”
हालांकि किसानों का कहना है कि बीमा क्लेम की प्रक्रिया अक्सर लंबी होती है और कई बार सर्वे रिपोर्ट सही नहीं बनती।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
यूपी में सबसे ज्यादा नुकसान किन जिलों में हुआ?
मऊ, देवरिया, अमेठी, कौशांबी, प्रयागराज, सुलतानपुर और बहराइच सबसे प्रभावित जिले हैं। इन जिलों में औसतन 50–90 मिमी बारिश हुई और हजारों हेक्टेयर में फसलें डूबीं।
किसानों को मुआवजा कैसे मिलेगा?
जिन इलाकों में 33% या अधिक फसल नुकसान हुआ है, वहां तत्काल राहत दी जाएगी। 50% से अधिक नुकसान पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत भुगतान होगा। आवेदन ऑनलाइन और CSC केंद्रों से भी किया जा सकता है।
क्या बारिश से अगली रबी फसल पर असर पड़ेगा?
हां, जलभराव और नमी के कारण गेहूं की बुआई में देरी होगी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि बुआई लगभग 10–15 दिन पीछे जा सकती है, जिससे उत्पादन में 4–5% गिरावट संभव है।
सरकार क्या कदम उठा रही है?
राज्य सरकार ने ₹500 करोड़ राहत कोष की घोषणा की है और “फसल हानि राहत केंद्र” स्थापित किए जा रहे हैं। इसके साथ ही जलभराव कम करने के लिए सिंचाई विभाग को ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त करने के निर्देश दिए गए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य को दीर्घकालिक रणनीति की जरूरत है — जिसमें वर्षा पूर्व तैयारी, नालों की सफाई, और आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत किया जाए।
किसानों का कहना है कि यदि सरकार तत्काल मुआवजा और बीमा भुगतान सुनिश्चित कर दे तो वे अगली फसल के लिए फिर से खेत में उतर सकते हैं।
लेकिन अगर राहत में देरी हुई तो आने वाले महीनों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ना तय है।