
ब्यूरो रिपोर्ट,
चित्रकूट स्थानीय सामाजिक समता और पारिवारिक सेवा को मान्यता देने के लहजे में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के मद्देनज़र संजय सिंह राणा ने जिला पंचायत सदस्य की सभी 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारने की घोषणा कर दी है। उनका दावा है कि ये टिकट उन परिवारों के युवाओं को दिए जाएंगे जिनके पूर्वज वर्षों तक राजनीतिक सेवा में लगे रहे पर कभी मौका नहीं मिला।
त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था और स्थानीय स्वशासन के महत्व को उजागर करते हुए संजय सिंह राणा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पारंपरिक राजनीतिक हैरिटेज और सेवाभावी परिवारों के सम्मान पर जोर दिया। राणा के मुताबिक यह पहल केवल चुनाव जीतने की राजनीति नहीं, बल्कि उन परिवारों के संघर्ष और त्याग का सार्वजनिक प्रतिफल है जो लंबे समय से पीछे रहते आए हैं।
घोषणा का पृष्ठभूमि — क्या कहा राणा ने
राणा ने अपने संवाद में कहा कि “मैं इस समर में सर्व समाज के ऐसे युवाओं को टिकट दूंगा जिनके बाप-दादाओं ने हमेशा किसी न किसी राजनीतिक दल की सेवा की है, पर उन्हें खुद चुनाव लड़ने का मौका कभी नहीं मिला।” उन्होंने स्पष्ट किया कि ये उम्मीदवार स्थानीय होंगे, ग्रामीण और शहरी संघर्षों को समझते होंगे और जनहित के मुद्दों को प्राथमिकता देंगे।
उन्होंने कहा — “क्योंकि हारा हुआ व्यक्ति ही जीतता है — हार माना हुआ व्यक्ति कभी भी सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकता। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।” यह संदेश व्यक्तिगत प्रेरणा के साथ सामूहिक सम्मान की राजनीति का भी संकेत देता है।
रणनीति: 17 सीटों का फोकस
राणा ने अपनी रणनीति का केन्द्र बिन्दु जिला पंचायत की सभी 17 सीटें बताया। जिला पंचायत (ज़िला परिषद/ज़िला पञ्चायत) ग्राम-स्तर के ऊपर ब्लॉक और जिला स्तर पर योजनाओं, विकास और धन के वितरण में निर्णायक भूमिका निभाती है — इसलिए ज़िला पंचायत की स्थिति स्थानीय शासन में महत्वपूर्ण मानी जाती है। 0
स्थानीय नीति-निर्माण, ग्रामीण विकास योजनाओं की देखरेख और अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन जिला परिषद के माध्यम से ही होता है — इसलिए राणा का फोकस इन सीटों पर ग्रामीण और बुनियादी विकास के एजेंडे को तेज़ करने का संकेत है।
न्याय व सम्मान की राजनीति — किसे लाभ?
राणा का तर्क है कि राजनीति में वर्षों तक सेवा देने वाले परंपरागत परिवारों को अक्सर मंच पर आने का मौका नहीं मिलता — उनका आशय सामाजिक और राजनीतिक इंट्रीगues, पार्टी अनुशासन या टिकट बांटने के पारंपरिक तरीकों की आलोचना से भी जुड़ा हुआ है। यह एक प्रकार की प्रतिवार्ता (counter-elite) राजनीति है जो स्थानीय स्तर पर मौजूद “भूले-बिसरे” कार्यकर्ताओं को आगे लाने का प्रयास दिखाती है।
कदम और चुनौतियाँ
- उम्मीदवारों का चयन: राणा ने कहा कि उम्मीदवार आप ही के बीच होंगे — इसका अर्थ स्थानीय मान्यता, पारिवारिक सेवा रिकॉर्ड और सामुदायिक स्वीकार्यता पर आधारित चयन होगा।
- प्रतिस्पर्धा: जिले के राजनैतिक परिदृश्य में पारंपरिक पार्टियों और स्थानीय गठबंधनों से मुकाबला चुनौतीपूर्ण होगा।
- आरक्षण व चुनाव प्रक्रिया: पंचायत चुनावों का संचालन सामान्यतः राज्य चुनाव आयोग / राज्य की संबंधित इकाइयों के द्वारा होता है और सीटों पर आरक्षण, चुनाव शेड्यूल आदि नियमों का पालन आवश्यक होता है — इसलिए चुनाव अभियान के दौरान प्रक्रियागत नियमों का भी पालन अनिवार्य है। 1
स्थानीय प्रतिक्रिया और उम्मीदें
स्थानीय निरीक्षण से पता चलता है कि कई ग्रामीण परिवारों में इस घोषणा को लेकर उत्साह है — खास कर उन परिवारों में जो दशकों तक पार्टी कार्यकर्ता रहे पर सार्वजनिक प्रतिनिधित्व से वंचित रहे। वहीं राजनीतिक विश्लेषक इसे “समाज-आधारित टिकटिंग” की एक वैकल्पिक कोशिश मानते हैं, जो पारंपरिक व सोपे-नेताओं के बजाय स्थानीय सेवा के प्रभाव को तरजीह देती है।
नज़रिए से जुड़ी विधिक और संवैधानिक बातें
पंचायती राज की संवैधानिक पृष्ठभूमि 73वें संशोधन से जुड़ी है, जिसने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया और स्थानीय स्वशासन को सुदृढ़ किया। इस संदर्भ में जिला स्तर की पंचायतों की भूमिका और चुनावी प्रावधानों का संवैधानिक महत्व रहता है। 2
संजय सिंह राणा की घोषणा — सर्व समाज के सम्मान के नाम पर 17 सीटों पर स्थानीय उम्मीदवार उतारने की रणनीति — स्थानीय राजनीति में नए सिरे से पहचान और प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाती है। यह पहल उन परिवारों को मंच दे सकती है जो वर्षों से जनता की सेवा में लगे रहे पर राजनीति के औपचारिक रैंकों में मौका नहीं पा सके। चुनाव नतीजे और स्थानीय समीकरण ही बताएंगे कि क्या यह मॉडल जिलास्तर पर सफल रूप में उभरता है या पारंपरिक पार्टियों की मजबूती बनी रहती है।









