
रावण संहार लीला : जनमानस में गहराई से रच-बस गई
संतोष कुमार सोनी के साथ सुशील कुमार मिश्रा की रिपोर्ट
बांदा/करतल। शारदीय नवरात्रि की पूर्णाहुति के बाद विजयादशमी के दूसरे दिन ग्राम नहरी में आयोजित रावण संहार लीला ने हजारों श्रद्धालुओं और दर्शकों को अध्यात्म, भक्ति और परंपरा से ओतप्रोत कर दिया। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस सांस्कृतिक विरासत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सनातन धर्म की जड़ें आज भी जनमानस में गहराई से रची-बसी हैं।
रावण संहार लीला की परंपरा और आस्था
ग्राम नहरी स्थित पंचायत के रावण पहाड़ी मेला मैदान में आयोजित इस रावण संहार लीला की परंपरा सदियों पुरानी है। हर वर्ष नवरात्रि के उपरांत यहां रावण दहन का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दराज़ से लोग आकर हिस्सा लेते हैं। इस वर्ष भी स्थानीय मेला कमेटी उदईपुरवा (नहरी) द्वारा बड़े ही भव्य और सजीव मंचन का आयोजन किया गया।
मंचन में भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान, जामवंत और सुग्रीव जैसे दिव्य पात्रों के साथ-साथ कुम्भकर्ण, मेघनाद और राक्षस दल का अभिनय बाल कलाकारों ने किया। उनकी सजीव प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
20 फीट ऊंची रावण प्रतिमा का ध्वंस
कार्यक्रम की मुख्य आकर्षण रही बांस और बल्लियों से बनी लगभग 20 फीट ऊंची रावण की दो विशाल प्रतिमाएँ। राम-रावण युद्ध के मंचन में जैसे ही भगवान राम ने कुम्भकर्ण का वध किया और लक्ष्मण ने मेघनाद को धराशायी किया, पूरा वातावरण जयश्रीराम के नारों से गूंज उठा। अंततः जब रामबाण से लंकापति रावण धराशायी हुआ, तो उपस्थित जनसमूह भाव-विभोर हो उठा।
दर्शनार्थियों की जुबान पर एक स्वर में “जयश्रीराम” की गूंज सुनाई दी, जिसने मैदान को आध्यात्मिक और वीर रस से भर दिया।
बुंदेली परंपरा और लोकगीतों की छटा
रावण संहार लीला के दौरान गाजे-बाजे और पारंपरिक बुंदेली गीतों की धुन ने कार्यक्रम को और भी मनोरंजक बना दिया। स्थानीय लोक कलाकारों और संगीतकारों ने इस मंचन को सांस्कृतिक रंगत प्रदान की।

इन गीतों ने न केवल दर्शकों को झूमने पर मजबूर किया, बल्कि सनातन परंपरा की जीवंत झलक भी प्रस्तुत की।
मेले की रौनक और खरीदारी का आनंद
इस अवसर पर आयोजित दशहरा मेले ने पूरे क्षेत्र को उत्सवधर्मी बना दिया। सैकड़ों अस्थायी दुकानों पर खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर दैनिक उपयोग के सामान और बच्चों के खिलौने उपलब्ध रहे।
दर्शकों और श्रद्धालुओं ने जमकर खरीदारी की और पारिवारिक आनंद का अनुभव लिया। महिलाओं ने चूड़ियों और परिधानों की खरीदारी की, जबकि बच्चों ने झूले और मिठाइयों का लुत्फ उठाया।
सुरक्षा और अनुशासन का विशेष प्रबंध
रावण संहार लीला के इस आयोजन को शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न कराने में पुलिस प्रशासन की भूमिका सराहनीय रही। स्थानीय चौकी प्रभारी अरविंद सिंह और उनकी टीम ने पूरी चौकसी के साथ सुरक्षा व्यवस्था संभाली।
इस सतर्कता के चलते पूरा आयोजन न केवल अनुशासित बल्कि श्रद्धा और उल्लास से परिपूर्ण रहा।
सनातन धर्म का जीवंत संदेश
इस रावण संहार लीला ने यह स्पष्ट कर दिया कि परंपराएँ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होतीं, बल्कि वे समाज में नैतिकता, साहस और संस्कृति को जीवित रखने का माध्यम भी हैं।
राम-रावण युद्ध का यह मंचन केवल मनोरंजन नहीं था, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीकात्मक संदेश भी था। रावण का धराशायी होना इस बात की पुनः पुष्टि करता है कि अधर्म चाहे कितना ही बलवान क्यों न हो, अंततः धर्म की ही विजय होती है।
ग्राम नहरी की रावण संहार लीला सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का जीवंत संगम है। जयश्रीराम के नारों से गूंजते इस आयोजन ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि दशहरा का पर्व समाज में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करता है।