
ऐतिहासिक समर्पण की ऐतिहासिक गूंज
हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में गुरुवार को ऐतिहासिक समर्पण देखने को मिला। कुल 103 नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के सामने आत्मसमर्पण किया।
यह घटना छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक ही दिन का सबसे बड़ा माओवादी आत्मसमर्पण मानी जा रही है। खास बात यह रही कि यह ऐतिहासिक समर्पण विजयादशमी के शुभ अवसर पर हुआ, जब अच्छाई की जीत और बुराई के अंत का संदेश दिया जाता है।
ऐतिहासिक समर्पण और माओवादी संगठन की हार
इस ऐतिहासिक समर्पण में शामिल 103 नक्सलियों में 22 महिलाएं भी थीं, जबकि 49 नक्सलियों पर कुल 1.06 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों में कई कुख्यात नाम शामिल हैं। इनमें डिवीजनल कमिटी सदस्य लछू पुनेम उर्फ संतोष, प्लाटून पार्टी कमिटी सदस्य गुड्डू फरसा, भीमा सोढी, हिड़मे फरसा और सुकमती ओयाम जैसे नक्सली शामिल हैं। इन पर 8-8 लाख रुपये का इनाम घोषित था। इसके अलावा, कई अन्य नक्सलियों पर लाखों रुपये का इनाम था।
यह ऐतिहासिक समर्पण केवल हथियार डालने की घटना नहीं, बल्कि उस विचारधारा की पराजय है, जिसने दशकों तक बस्तर और आस-पास के इलाकों को हिंसा और भय के माहौल में झोंक रखा था।
ऐतिहासिक समर्पण के पीछे के कारण
नक्सलियों ने इस ऐतिहासिक समर्पण की वजह संगठन के भीतर गहरे मतभेद, लगातार सुरक्षा बलों की दबिश और शीर्ष नेतृत्व की कमजोर स्थिति को बताया। बीजापुर के पुलिस अधीक्षक जीतेंद्र कुमार यादव ने कहा कि हाल ही में कई नक्सली नेता या तो मारे गए हैं या आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इससे कैडर स्तर पर भय और निराशा का माहौल बन गया है।
वहीं, नक्सलियों ने खुद माना कि वे छत्तीसगढ़ सरकार की योजनाओं और पुनर्वास नीति से प्रभावित हुए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की पहुंच ने उन्हें यह एहसास कराया कि हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटना ही बेहतर विकल्प है।
सरकारी नीतियों से प्रभावित हुआ ऐतिहासिक समर्पण
छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कई विकास योजनाएं शुरू की हैं। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं अब इन इलाकों तक पहुंच रही हैं। नई आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति के तहत नक्सलियों को न केवल आर्थिक सहायता दी जा रही है, बल्कि नौकरी और कौशल विकास का भी अवसर प्रदान किया जा रहा है।
इस ऐतिहासिक समर्पण के तहत आत्मसमर्पण करने वाले हर नक्सली को तुरंत 50,000 रुपये की सहायता दी गई। इसके बाद, उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाएगा।
ऐतिहासिक समर्पण के आंकड़े
इस साल बीजापुर में अब तक 410 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं।
421 नक्सली गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
राज्य स्तर पर 253 नक्सली मारे गए हैं, जिनमें से 224 बस्तर संभाग में ढेर हुए।
यह आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में माओवादी आंदोलन अब लगातार कमजोर पड़ रहा है और नक्सली संगठन की जड़ें हिल चुकी हैं।
विजयादशमी पर ऐतिहासिक समर्पण का संदेश
इस ऐतिहासिक समर्पण का समय भी बेहद प्रतीकात्मक है। विजयादशमी के दिन जब पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाया जा रहा था, उसी दिन 103 नक्सलियों ने हिंसा और आतंक का रास्ता छोड़ दिया। यह न केवल बस्तर के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक सकारात्मक संकेत है कि अब शांति और विकास का दौर आने वाला है।
बीजापुर में हुआ यह ऐतिहासिक समर्पण न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है। दशकों से चली आ रही माओवादी हिंसा के खिलाफ यह निर्णायक मोड़ है। यह घटना साबित करती है कि जब सरकार की नीतियां जनहित में काम करती हैं और विकास की रोशनी दूर-दराज के गांवों तक पहुंचती है, तो हिंसा और आतंक की विचारधारा टिक नहीं पाती।
अब सवाल यह है कि इस ऐतिहासिक समर्पण से प्रेरित होकर और कितने नक्सली मुख्यधारा में लौटेंगे और बस्तर की धरती को हिंसा से मुक्त करेंगे।
