पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं : बृजभूषण शरण सिंह ने ये क्या और क्यों कह डाला ❓

भाजपा नेता और पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आई लव मोहम्मद विवाद पर बोलते हुए।

पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं : बृजभूषण शरण सिंह का बयान बना चर्चा का विषय

अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट

गोंडा के पूर्व बीजेपी सांसद और उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह अपने बेबाक बयानों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। 

गुरुवार को कन्नौज जनपद के छिबरामऊ में आयोजित विजय दशमी और शस्त्र पूजन कार्यक्रम के दौरान उन्होंने एक ऐसा बयान दे दिया, जिसने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी। उन्होंने कहा कि “पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि आजकल नौकरियों में सब कुछ आउटसोर्सिंग हो चुका है।”

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उनके इस बयान ने शिक्षा और रोजगार को लेकर चल रही बहस को एक नई दिशा दे दी है।

पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं: बेरोजगारी पर कसा तंज

जब बृजभूषण शरण सिंह मंच पर आए तो उनके संबोधन ने सभी को हैरान कर दिया। उन्होंने कहा,

“पढ़ाई-लिखाई करके करोगे क्या? आजकल नौकरियां आउटसोर्सिंग पर हैं। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में स्थायी नौकरियों की जगह कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्सिंग का चलन है। ऐसे में पढ़ने-लिखने का फायदा नहीं है।”

यह बयान सीधा उन युवाओं पर चोट करता है जो वर्षों तक मेहनत करके प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।

पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं : लग्जरी लाइफ का प्रदर्शन

कार्यक्रम में बृजभूषण शरण सिंह ने अपनी आलीशान जीवनशैली का भी जिक्र किया। उन्होंने गर्व से कहा कि वे किराए के हेलिकॉप्टर से नहीं बल्कि अपने खरीदे हुए हेलिकॉप्टर से छिबरामऊ आए हैं। यह बयान सुनते ही वहां मौजूद लोगों में खुसर-फुसर शुरू हो गई।

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उनका कहना था कि सफलता हासिल करने के लिए हमें उन लोगों के साथ रहना चाहिए जो पहले से सफल हैं। उनके अनुसार, संगति और नेटवर्किंग ही जीवन को ऊँचाई तक ले जाती है।

पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं : सोशल मीडिया पर बयान वायरल

जैसे ही उनका यह बयान सामने आया, सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। लोग इसे लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देने लगे। कुछ ने इसे युवाओं का मनोबल तोड़ने वाला बताया तो कुछ ने कहा कि बृजभूषण सिंह वास्तविकता बयान कर रहे हैं।

ट्विटर (अब X), फेसबुक और व्हाट्सऐप समूहों में उनके बयान पर बहस छिड़ गई। कई लोग लिख रहे हैं कि “पढ़ाई के बिना समाज का भविष्य कैसे बनेगा?” वहीं कुछ ने तंज कसते हुए कहा कि “नेताओं के बच्चों को पढ़ाई की जरूरत नहीं होती, लेकिन आम लोगों के लिए शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है।”

पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं : कौन हैं बृजभूषण शरण सिंह?

बृजभूषण शरण सिंह उत्तर प्रदेश की राजनीति का बड़ा नाम हैं। वे छह बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं—पांच बार भाजपा से और एक बार समाजवादी पार्टी से।

उनका राजनीतिक सफर 1980 के दशक में छात्र राजनीति से शुरू हुआ।

अयोध्या के सकेत पीजी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे कांग्रेस यूथ विंग से जुड़े।

राम मंदिर आंदोलन के दौरान वे लालकृष्ण आडवाणी के साथ सक्रिय हुए।

1991 में गोंडा से पहली बार भाजपा के टिकट पर सांसद बने।

वे लंबे समय तक भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के अध्यक्ष भी रहे।

हालांकि, महिला पहलवानों के उत्पीड़न के आरोपों के चलते उनका नाम विवादों में रहा और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट न देकर उनके बेटे को मौका दिया, जो वर्तमान में सांसद हैं।

पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं : राजनीतिक पृष्ठभूमि और बाहुबली छवि

बृजभूषण शरण सिंह सिर्फ सांसद ही नहीं बल्कि बाहुबली नेता के तौर पर भी चर्चित रहे हैं। गोंडा और पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनकी पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है। उनकी बेबाकी और विवादित बयान हमेशा सुर्खियां बटोरते हैं।

इस बार भी उनका यह बयान उनकी उसी छवि को और मजबूत करता है कि वे मंच से कुछ भी बोल सकते हैं और चर्चाओं का केंद्र बन सकते हैं।

पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं : युवाओं के लिए क्या संदेश?

बृजभूषण शरण सिंह के बयान को अलग-अलग तरीके से समझा जा रहा है। एक ओर यह बेरोजगारी की सच्चाई को सामने लाता है कि नौकरियों में आउटसोर्सिंग और कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम ने स्थायित्व खत्म कर दिया है। दूसरी ओर यह युवाओं को शिक्षा से विमुख करने वाला संदेश भी देता है।

युवाओं के लिए यह विचार करना जरूरी है कि क्या सचमुच पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं रही? या फिर शिक्षा ही वह आधार है जिसके सहारे वे समाज और जीवन में नई ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हैं।

बृजभूषण शरण सिंह का बयान “पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं” एक बार फिर उनकी बेबाकी और विवादित शैली को दर्शाता है। उन्होंने बेरोजगारी पर तंज कसते हुए आउटसोर्सिंग की सच्चाई को उजागर किया, लेकिन यह भी सच है कि शिक्षा के बिना कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता।

यह बयान चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, इसने एक बहस जरूर छेड़ दी है—क्या आज के दौर में पढ़ने-लिखने की कोई जरूरत नहीं है? या फिर शिक्षा ही सबसे बड़ी पूंजी है?

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