Sunday, July 20, 2025
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वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में पेश, पारित होना लगभग तय

वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में पेश कर दिया गया है, और इसके पारित होने की संभावना लगभग तय मानी जा रही है। इस बिल को लेकर विपक्षी दलों की उम्मीदें उस समय धराशायी हो गईं जब तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी), जनता दल-यू (JDU), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) जैसे दलों ने भाजपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इन दलों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को बिल में शामिल कर लिया है।

बहुमत का शक्ति-परीक्षण और बदलती धर्मनिरपेक्षता

इस बिल के जरिए भाजपा ने न केवल अपने बहुमत की ताकत को प्रदर्शित किया है, बल्कि धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा को भी नया आयाम दिया है। अब तक यह धारणा थी कि केवल मुसलमानों का समर्थन लेना या देना ही धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है, लेकिन अब भाजपा-समर्थक दल भी इसी श्रेणी में माने जा रहे हैं।

कांग्रेस और भाजपा का वक्फ कानून से जुड़ा रुख

गौरतलब है कि 2013 में कांग्रेस और भाजपा, दोनों ने मिलकर वक्फ कानून में संशोधन किए थे, जिसका किसी भी दल ने विरोध नहीं किया। उस समय भाजपा के सांसद शाहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी ने भी संशोधनों का समर्थन किया था। इसके अलावा, 2019 तक वक्फ संपत्तियों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया भी पूरी हुई, जिसमें मोदी सरकार की भूमिका अहम रही।

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वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर बढ़ेगी पारदर्शिता

भारत में वक्फ बोर्ड करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन और 8.72 लाख संपत्तियों का मालिक है। इतनी बड़ी संपत्ति की जवाबदेही और पारदर्शिता जरूरी है। नया संशोधन बिल इसी को सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है।

1. नियंत्रण और ऑडिट: अब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों और खातों का नियमित ऑडिट किया जाएगा, जो केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकार-क्षेत्र में होगा।

2. धर्मपरिवर्तन पर प्रावधान: अगर किसी व्यक्ति ने मुसलमान बने 5 साल पूरे नहीं किए हैं, तो वह अपनी संपत्ति वक्फ बोर्ड को दान नहीं कर सकेगा। इससे अनैतिक धर्मांतरण को भी रोका जा सकेगा।

3. संपत्ति स्वामित्व की पुष्टि: केवल उन्हीं संपत्तियों को वक्फ किया जा सकेगा, जो संबंधित व्यक्ति के नाम पर कानूनी रूप से पंजीकृत हों।

विपक्ष की प्रतिक्रिया और ओवैसी का रुख

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और कुछ मुस्लिम धर्मगुरु इस बिल के खिलाफ लगातार बयान दे रहे हैं। हालांकि, उनकी व्याख्या कितनी व्यावहारिक है, यह सवाल उठाया जा रहा है। इसी तरह का भ्रम नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर भी फैलाया गया था, लेकिन अब तक किसी भी भारतीय मुसलमान की नागरिकता नहीं छीनी गई।

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वक्फ संशोधन बिल एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है, जो न केवल वक्फ बोर्ड की जवाबदेही सुनिश्चित करेगा, बल्कि इसकी संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने में भी सहायक होगा। अब देखना यह है कि राज्यसभा में इस बिल को लेकर क्या रुख अपनाया जाता है।

➡️संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट

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