“गिराने से पहले संवाद करो”: नोटिस के विरोध में व्यापारी एकजुट, राज्य विकास मंत्री से मिला आश्वासन





“गिराने से पहले संवाद करो”: नोटिस के विरोध में व्यापारी एकजुट, राज्य विकास मंत्री से मिला आश्वासन

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✍️ रितेश गुप्ता की रिपोर्ट

सीतापुर, उत्तर प्रदेश। नगर पालिका परिषद सीतापुर द्वारा आज़ादी के समय से चली आ रही दुकानों और मकानों को गिराने के लिए नोटिस जारी किए जाने से शहर के व्यापारियों में भारी रोष व्याप्त है। पीढ़ियों से चल रहे कारोबार पर अचानक छाए इस अनिश्चितता के साए ने न केवल व्यापारियों की आर्थिक सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया पर भी कई तरह की शंकाएँ जन्म दे दी हैं।

व्यापारियों का कहना है कि जिन प्रतिष्ठानों को आज ध्वस्तीकरण की जद में लाया जा रहा है, वे कोई अस्थायी या हालिया कब्जेदारी नहीं हैं, दशकों से चले आ रहे व्यापारिक केंद्र हैं। इन दुकानों और मकानों से न केवल संबंधित परिवारों की रोज़ी-रोटी चलती है, बल्कि शहर की आर्थिक गतिविधियों का एक बड़ा हिस्सा भी इन्हीं से संचालित होता है।

मामला तब और गंभीर हो गया, जब नगर पालिका परिषद की ओर से जारी नोटिस में यह उल्लेख किया गया कि संबंधित संपत्तियाँ नगर पालिका की भूमि पर अवैध कब्जे के रूप में दर्ज हैं और इन्हें हटाने के लिए निर्धारित अवधि में भवन खाली किया जाए, अन्यथा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।


पुरानी कब्जेदारी पर अचानक सवाल, व्यापारी परेशान

व्यापारियों का सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि यदि यह कब्जेदारी अवैध थी, तो फिर नगर पालिका परिषद ने वर्षों तक इन दुकानों और मकानों से किराया और टैक्स क्यों वसूला? व्यापारियों के अनुसार नगर पालिका लंबे समय तक नियमित रूप से किराया, टैक्स, जलकर और अन्य देयकों की वसूली करती रही है, जिससे यह साफ संकेत मिलता है कि खुद प्रशासन ने इन प्रतिष्ठानों को मान्यता दी हुई थी।

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व्यापारियों का कहना है कि अब अचानक इन्हीं दुकानों और मकानों पर अवैध कब्जा बताकर नोटिस जारी कर देना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि स्थापित तथ्यों के भी विपरीत है। उनका आरोप है कि नगर पालिका ने बिना पूर्व संवाद, बैठक या सुनवाई के, सीधे नोटिस थमाकर ध्वस्तीकरण का रास्ता चुन लिया, जिससे दर्जनों परिवारों की आजीविका पर तलवार लटक गई है।

उधर, यह भी तथ्य सामने आया है कि नगर पालिका पिछले लगभग 8 वर्षों से किराया स्वीकार नहीं कर रही, जबकि व्यापारी आज भी किराया जमा करने के लिए तैयार हैं। इस परिस्थिति में व्यापारी सवाल उठा रहे हैं कि यदि प्रशासन स्वयं किराया लेने से पीछे हट गया, तो इसका दोष वे कैसे भुगतें?


राज्य विकास मंत्री से मिले व्यापारी, समस्या समाधान का मिला आश्वासन

नगर पालिका की इस कार्रवाई के विरोध में शहर के व्यापारियों ने संगठित होकर अपनी बात सरकार तक पहुंचाने की पहल की। व्यापार मंडल जिलाध्यक्ष भगवती गुप्ता के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्य विकास मंत्री श्री राकेश राठौर से भेंट की और पूरी स्थिति से अवगत कराया।

व्यापारियों ने मंत्री के सामने स्पष्ट रख दिया कि यह केवल दुकानों के निर्माण या ज़मीन का मुद्दा नहीं है, बल्कि सैकड़ों लोगों की रोज़ी-रोटी और पीढ़ियों से जुड़ी भावनाओं का सवाल है। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि यदि इन दुकानों और मकानों को गिरा दिया गया, तो कई परिवार आर्थिक रूप से पूरी तरह टूट जाएंगे और बेरोज़गारी की समस्या और बढ़ जाएगी।

मंत्री राकेश राठौर ने व्यापारियों की बातें गंभीरता से सुनते हुए आश्वस्त किया कि वे जिलाधिकारी से वार्तालाप कर इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करेंगे। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया और मानवीय दृष्टिकोण के किसी भी परिवार या व्यापारी को बेघर या बेदखल करना उचित नहीं माना जाएगा।

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व्यापारियों ने इस दौरान जिलाधिकारी और राज्य विकास मंत्री को ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें स्पष्ट मांग की गई कि—

  • पुरानी कब्जेदारी को वैधानिक रूप से मान्यता देकर पूर्व स्थिति में ही रहने दिया जाए।
  • नगर पालिका पूर्व की भांति किराया और टैक्स स्वीकार करना पुनः शुरू करे, ताकि कानूनी विवाद समाप्त हो सके।
  • जब तक कोई संतोषजनक विकल्प या पुनर्वास व्यवस्था नहीं की जाती, तब तक ध्वस्तीकरण की कार्रवाई रोकी जाए।

व्यापार मंडल जिलाध्यक्ष मैदान में, आंदोलन की भी चेतावनी

व्यापार मंडल जिलाध्यक्ष भगवती गुप्ता ने साफ कहा कि व्यापारी वर्ग कानून का सम्मान करता है और नगर पालिका को देय सभी किराये व टैक्स जमा करने के लिए आज भी तैयार है। लेकिन प्रशासन की ओर से संवाद से बचते हुए सीधे बुलडोजर की भाषा अपनाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

उन्होंने कहा, “वर्षों तक नगर पालिका द्वारा किराया और टैक्स वसूलना खुद इस बात का प्रमाण है कि ये प्रतिष्ठान मान्यता प्राप्त हैं। यदि अब इन्हें अवैध कहा जा रहा है, तो यह केवल प्रशासनिक असंगति ही नहीं, बल्कि व्यापारियों के साथ सरासर अन्याय भी है।”

भगवती गुप्ता ने यह भी चेतावनी दी कि यदि समय रहते नोटिस वापस नहीं लिए गए और व्यापारी हितों की रक्षा के लिए ठोस निर्णय नहीं हुआ, तो व्यापार मंडल व्यापक आंदोलन की राह भी चुन सकता है। इसमें बाज़ार बंद रखने से लेकर धरना-प्रदर्शन जैसे लोकतांत्रिक तरीके अपनाए जा सकते हैं।


“किराया लेते-लेते अब कब्जा अवैध कैसे?” शहर में उठ रहे सवाल

आम नागरिकों और अन्य व्यापारियों के बीच भी कई सवाल उठ रहे हैं। लोगों का कहना है कि—

  • यदि कब्जा अवैध था, तो नगर पालिका ने इतने वर्षों तक किराया और टैक्स क्यों वसूल किया?
  • आठ साल पहले अचानक किराया लेना बंद करने की क्या वजह थी और इसे लिखित रूप में क्यों नहीं स्पष्ट किया गया?
  • क्या नोटिस जारी करने से पहले किसी प्रकार की सार्वजनिक सुनवाई या संयुक्त बैठक आयोजित की गई?
  • क्या नगर पालिका ने उन परिवारों के पुनर्वास या वैकल्पिक व्यवस्था पर भी कोई योजना बनाई है?
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इन सवालों पर अब तक नगर पालिका प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट जवाब सामने नहीं आया है, जिससे असमंजस और असंतोष की स्थिति और बढ़ती जा रही है।


रोज़ी-रोटी बनाम प्रशासनिक सख्ती, शहर की बड़ी बहस

सीतापुर में यह मामला अब केवल कुछ दुकानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह रोज़ी-रोटी बनाम प्रशासनिक सख्ती की बहस का विषय बन गया है। एक ओर प्रशासनिक दलीलें हैं, जिनमें भूमि के स्वामित्व और नियमों का हवाला दिया जा रहा है, तो दूसरी ओर वह मानवीय पक्ष है, जो दशकों से व्यापार कर रहे परिवारों की पीड़ा और आशंकाओं से जुड़ा है।

व्यापारियों का कहना है कि यदि प्रशासन वास्तव में व्यवस्था सुधारना चाहता है, तो उसे सबसे पहले संवाद का रास्ता चुनना चाहिए, न कि सीधे नोटिस और बुलडोजर की नीति अपनानी चाहिए। कई व्यापारी इस बात पर जोर देते हैं कि—

“गिराने से पहले संवाद करो, समाधान खोजो, ताकि व्यवस्था भी बनी रहे और किसी परिवार की रोटी भी न छिने।”

अब उम्मीदें राज्य विकास मंत्री और जिला प्रशासन की अगली कार्यवाही पर टिकी हैं। यदि दोनों पक्षों के बीच सार्थक बातचीत होती है, तो संभव है कि कोई ऐसा रास्ता निकले जिससे प्रशासनिक नियमों का भी पालन हो और व्यापारियों की पीढ़ियों से जुड़ी आजीविका भी सुरक्षित रह सके।

फिलहाल, शहर का व्यापारी वर्ग निर्णय की प्रतीक्षा में है और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगामी दिनों में नगर पालिका परिषद अपने नोटिस पर अडिग रहती है या फिर संवाद के माध्यम से समाधान की दिशा में आगे बढ़ती है।

समाचार दर्पण डेस्क द्वारा संपादित, ©समाचार दर्पण


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