
गर्गाचार्य की भूमि और ब्रज 84 कोस परिक्रमा मार्ग का महत्व
ठाकुर के के सिंह की रिपोर्ट
गर्गाचार्य की भूमि और ब्रज 84 कोस परिक्रमा मार्ग सनातन आस्था का आधार माने जाते हैं। शास्त्रों में वर्णित यह मार्ग भगवान श्रीकृष्ण और बलराम से जुड़ी अनगिनत स्मृतियों को संजोए हुए है। विशेष रूप से फरह और उसके आसपास के गांव जैसे – गढ़ाया, लतीफपुर, बलरई, शाहपुर, झंडीपुर, सुल्तानपुर और नगला गयासी इस पथ का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।
परंतु हाल ही में तीर्थ विकास परिषद द्वारा बनाए जा रहे नए खाके ने ग्रामीणों को आक्रोशित कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि नए मार्ग में उनके गांवों को बाहर कर दिया गया है, जबकि यह शास्त्रसम्मत और परंपरागत रूप से शामिल रहे हैं।
पूर्व जिलापंचायत अध्यक्ष ने उठाई आवाज़
फरह में गर्गाचार्य की भूमि और ब्रज 84 कोस परिक्रमा मार्ग से संबंधित इस विवाद को उठाने का बीड़ा पूर्व जिलापंचायत अध्यक्ष चौधरी अनूप सिंह गढ़ाया ने उठाया। हाथ में गर्ग संहिता और श्रीमद्भागवत गीता लेकर वे ग्राम प्रधानों और सैकड़ों ग्रामीणों के साथ तीर्थ विकास परिषद पहुंचे।
उन्होंने परिषद के उपाध्यक्ष शैलजकांत को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि गर्गाचार्य की तपोस्थली को इस परिक्रमा मार्ग से बाहर करना सनातन आस्था और धार्मिक परंपराओं के साथ बड़ा अन्याय है।
गर्गाचार्य की भूमि क्यों है महत्वपूर्ण?
गर्गाचार्य भगवान श्रीकृष्ण के राजपुरोहित और गुरु थे। उन्होंने ही गोकुल में श्रीकृष्ण और बलराम का जातकर्म संस्कार किया था। गढ़ाया क्षेत्र में आज भी उनकी तपोस्थली के अवशेष मौजूद हैं। गर्ग संहिता में इस स्थान का उल्लेख मिलता है और इसे धर्मशास्त्रों में पवित्र घोषित किया गया है।
ग्रामीणों का कहना है कि सदियों से लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना करते हुए इसी मार्ग से ब्रज की 84 कोस परिक्रमा करते आ रहे हैं। परिक्रमा का यही मार्ग उनकी आस्था का आधार रहा है, जिसे बदलना न तो उचित है और न ही स्वीकार्य।
ग्रामीणों की नाराज़गी और चिंता
गर्गाचार्य की भूमि और ब्रज 84 कोस परिक्रमा मार्ग में बदलाव से ग्रामीणों में नाराज़गी साफ झलक रही है। उनका कहना है कि नया मार्ग हथौड़ा से ब्राह्मघाट होते हुए बाद तक निकाला जा रहा है, जिसमें उनके गांवों को शामिल नहीं किया गया।

गांव गढ़ाया के प्रधान धर्मवीर सिंह उर्फ भोला चौधरी ने कहा कि इस बदलाव से ग्रामीणों की धार्मिक आस्थाएं आहत हो रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि परिषद ने उनके गांवों को पुनः शामिल नहीं किया, तो वे बड़े आंदोलन की राह पकड़ेंगे।
ज्ञापन और परिषद का आश्वासन
ज्ञापन सौंपने के बाद तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष शैलजकांत ने ग्रामीणों की भावनाओं को समझते हुए आश्वासन दिया कि परिषद परिक्रमा मार्ग के विकास में फरह के गढ़ाया, लतीफपुर, बलरई, शाहपुर, झंडीपुर, सुल्तानपुर और नगला गयासी गांवों को शामिल करने पर गंभीरता से विचार करेगी।
इस दौरान बलरई प्रधान मोहित, समाजसेवी ठाकुर केके सिंह, जगदीश और रूपचंद शर्मा भी उपस्थित रहे और उन्होंने परिषद से इस मुद्दे पर सकारात्मक कार्रवाई करने की मांग की।
गर्गाचार्य की भूमि और ब्रज 84 कोस परिक्रमा मार्ग विवाद : धार्मिक और सांस्कृतिक असर
यह विवाद केवल मार्ग निर्धारण का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह गर्गाचार्य की भूमि और ब्रज 84 कोस परिक्रमा मार्ग से जुड़ी सनातन श्रद्धा और धार्मिक परंपराओं का मामला है।
ग्रामीणों का मानना है कि जिस पथ से अनादिकाल से लाखों श्रद्धालु परिक्रमा करते आ रहे हैं, उसे किसी भी कीमत पर बदला नहीं जाना चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो न केवल उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होंगी, बल्कि ब्रज की आध्यात्मिक पहचान पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा होगा।
स्पष्ट है कि गर्गाचार्य की भूमि और ब्रज 84 कोस परिक्रमा मार्ग केवल एक मार्ग नहीं, बल्कि सनातनी संस्कृति, परंपरा और विश्वास का प्रतीक है। परिषद को चाहिए कि वह धार्मिक शास्त्रों और परंपराओं का सम्मान करते हुए ग्रामीणों की मांगों पर गंभीरता से निर्णय ले।
यदि यह विवाद समय रहते नहीं सुलझा, तो निश्चित रूप से यह आंदोलन का रूप ले सकता है और सनातन आस्था से जुड़े लाखों श्रद्धालुओं के लिए पीड़ा का कारण बनेगा।