हमीदा बानू, भारत की पहली महिला पहलवान, जिन्होंने 1950 के दशक में पुरुष पहलवानों को धूल चटाई। जानिए कैसे ‘अलीगढ़ की अमेजन’ ने समाज की बंदिशों को तोड़ा और रचा इतिहास।
संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
जब एक महिला ने दी चुनौती: “जो मुझे कुश्ती में हरा देगा, मैं उससे शादी कर लूंगी…”
उस दौर में जब महिलाएं मंच पर बोलने से भी डरती थीं, एक महिला ने अखाड़े में उतर कर मर्दों को चुनौती दी – “जो मुझे कुश्ती में हरा देगा, मैं उससे शादी कर लूंगी।” ये अल्फाज़ थे हमीदा बानू के, जो इतिहास में भारत की पहली महिला पेशेवर पहलवान के रूप में दर्ज हैं।
पुरुषों का खेल, महिलाओं की हिम्मत
1940-50 के दशक में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में जन्मीं हमीदा बानू ने एक ऐसे खेल में कदम रखा जिसे उस वक्त ‘मर्दों का अखाड़ा’ माना जाता था। लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने जीत की सीढ़ियां चढ़ीं, लोगों की सोच बदलती गई।
शुरुआत में उनका मज़ाक उड़ाया गया, कई पुरुष पहलवानों ने उनके साथ लड़ने से इनकार किया। मगर वक़्त बदला और फिर वही पुरुष हमीदा बानू के नाम से डरने लगे।
‘अलीगढ़ की अमेजन’ बन गईं मिसाल
अलीगढ़ में पहलवान सलाम पहलवान से प्रशिक्षण लेने वाली हमीदा ने एक के बाद एक 300 से अधिक कुश्ती मुकाबले जीते — जिनमें पुरुष और महिला दोनों पहलवान शामिल थे।
उनकी ताकत, तकनीक और आत्मविश्वास ने उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया कि लोग उन्हें ‘अलीगढ़ की अमेजन’ कहने लगे — अमेरिकी पहलवान अमेजन की तर्ज पर।
जब पहलवानों ने मैदान छोड़ना शुरू किया
गुजरात के बड़ौदा में आयोजित एक मुकाबले में जब हमीदा बानू पहुंचीं, तो उनके प्रतिद्वंदी ने डरकर मैदान छोड़ दिया।
बाद में उन्होंने इंटरनेशनल स्तर के पहलवान बाबा पहलवान को सिर्फ 1 मिनट 34 सेकंड में हरा दिया, जिसके बाद बाबा ने कुश्ती से संन्यास का ऐलान कर दिया।
1954 का ऐलान जिसने देश को हिला दिया
1954 में जब हमीदा बानू ने ऐलान किया कि “जो मुझे कुश्ती में हराएगा, मैं उससे शादी कर लूंगी”, तो देशभर में हलचल मच गई।
कई मशहूर पहलवानों ने उनसे मुकाबला किया — पटियाला और कोलकाता के चैंपियंस को उन्होंने हराया। जब गुजरात के गामा पहलवान से मुकाबले की बारी आई, तो उन्होंने भी मैदान में उतरने से इनकार कर दिया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जलवा
हमीदा बानू ने रूस की प्रसिद्ध महिला पहलवान वेरा चिस्टिलिन, जिन्हें फीमेल बियर कहा जाता था, को भी एक मिनट से पहले ही हरा दिया।
वेरा इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने हमीदा को यूरोप ले चलने का प्रस्ताव दिया। हमीदा तैयार भी हो गईं, लेकिन कोच सलाम पहलवान को यह नागवार गुज़रा।
बगावत की कीमत चुकाई
यूरोप जाने के फैसले के चलते हमीदा बानू को अपने ही कोच द्वारा शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्हें इतना मारा गया कि उनके हाथ-पैर टूट गए और महीनों तक वह चल नहीं सकीं।
यही वह मोड़ था जब हमीदा बानू का कुश्ती करियर ठहर गया और इतिहास के पन्नों में सिमट गया।
हमीदा की ताकतवर डाइट और जीवनशैली
105 किलो वजन वाली हमीदा की डाइट भी उतनी ही दमदार थी। उनकी दैनिक डाइट में शामिल था:
5 लीटर दूध, 2 किलो सूप, 2 लीटर जूस, 1 मुर्गा, 1 किलो मटन, आधा किलो मक्खन, 6 अंडे, 1 किलो बादाम, 2 रोटियां और 2 प्लेट बिरयानी।
वह रोज़ 6 घंटे कसरत करतीं और 9 घंटे की नींद लेती थीं।
जब लोगों ने नहीं पचा पाए महिला की जीत
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक पुरुष पहलवान को हराने के बाद भीड़ ने उन पर पत्थर बरसा दिए। इससे साफ होता है कि उस समय समाज को एक महिला की जीत स्वीकार नहीं थी।
मगर हमीदा बानू ने हार नहीं मानी। वह भारत की वो पहली महिला बनीं, जिन्होंने पुरुष वर्चस्व को चुनौती दी और एक नई राह दिखाई।
हमीदा बानू – सिर्फ एक पहलवान नहीं, एक क्रांति
हमीदा बानू की कहानी हिम्मत, संघर्ष और सफलता की मिसाल है। उन्होंने न केवल अखाड़े में, बल्कि समाज में भी महिलाओं के लिए एक नई पहचान बनाई।
आज जब हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो हमीदा बानू का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया जाना चाहिए।
वर्ष 2024 में गूगल डूडल द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि देना इस बात का प्रमाण है कि उनका योगदान आज भी याद किया जा रहा है।